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जनमेजय का नाग-यज्ञ
[ रत्नावली और प्रमदा का प्रवेश। नृत्य और गान ]
मधुर माधव ऋतु की रजनी, रसीली सुन कोकिल की तान।
सुखी कर साजन को सजनी, छवीली छोड हठीला मान॥
प्रकृति की मदमाती यह चाल, देख ले दृग भर पी के सङ्ग।
डाल दे गल वॉही का जाल, हृदय में भर ले प्रेम उमङ्ग॥
कलित है कोमल किसलय कुञ्ज, सुरभि पुरित सरोज मकरन्द।
खोल दे मुख-मण्डल सुख पुञ्ज, बोल दे वजे विपञ्ची-वृन्द॥
मधुर माधव०।
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