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पृष्ठ:जनमेजय का नागयज्ञ.djvu/७०

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पाँचवॉ दृश्य
स्थान―कानन मे एक कुटीर
[ तक्षक, वेद, काश्यप, सरमा और कुछ नाग तथा ब्राह्मण बैठे हैं ]

तक्षक―मैं अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ हूँ। पौरवों का नाश होने पर परिषद् की सत्ता आप लोगो के हाथ मे रहेगी, और हम लोग क्षत्रिय होकर आप लोगो के स्वाध्याय तथा शान्ति की रक्षा करेंगे। ब्राह्मणो पर हमारा कुछ भी नियंत्रण न रहेगा।

काश्यप―हाँ जी, यह तो ठीक ही है!

वेद―किन्तु शक्ति पा जाने पर तुम भी अत्याचारी न हो जाओगे, इसका क्या निश्चय है?

ब्राह्मण―सुनो जी, हम लोग आरण्यक, वानप्रस्थ, शान्त तपोधन ब्राह्मण हैं, अत्याचार से सुरक्षित रहने के लिये एक शुद्ध राजसत्ता चाहते हैं। हमारा किसी से द्वष नहीं है।

सरमा―अपने को अलग करके बचे हुओं पर यह दया दिखाई जाती है, किन्तु अपने को सर्वोच्च समझते हैं!

काश्यप―क्यो सरमा, क्या इसमे भी कोई सन्देह है?

सरमा―नही, आर्य काश्यप! इसमें क्या सन्देह है! आप और भी ऐसे ऐसे उत्तम काम करें, विप्लव करें; किन्तु आपके सर्वोच्च होने मे कौन सन्देह कर सकता है!

तक्षक―सरमा! क्या तुम भो ऐसा कहती हो? अपनी