पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/११

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जमसेदजी नसरवानजी ताता-


साइंस शिक्षा देनी थी, जिसको निरुद्यमी भारतके लिये पानीसे बिजली पैदाकर साहस और चातुर्यका नमूना खड़ा करना था, उसको किसी दूसरी ही शिक्षाकी ज़रूरत थी। इसीलिये युवक ताताने सरस्वती मंदिरका पूजन समाप्त कर लक्ष्मी मंदिरमें नैवेद्य चढ़ानेका विचार किया।

आपके पिताके पास बहुत थोड़ा धन था जिससे वे चीन देशके साथ रोज़गार करते थे। उस वक्त अफीमका रोज़गार इने गिने लोगोके हाथमें था जो और किसी पर इसका भेद नहीं खुलने देते थे। ताताजी काम सीखनेके लिये हांगकांग भेजे गये, जहां उनको बहुत तजरवा हुआ।

सन् १८६१ ई॰ में अमेरिकाके उत्तरी और दक्षिणी सूबोमे लड़ाई शुरू हुई। यह लड़ाई पांच बरस तक चलती रही। इससे न सिर्फ लड़नेवालों का नुकसान हुआ बल्कि लैंकशायरके कपड़े कारखानोंको भी बड़ा धक्का लगा। इन कारखानोंकी रूई अधिकतर अमेरिकासे आती थी। लड़ाईने यह आमद बंद कर दी। रोजगारी पारसियोने सोचा कि इस मौकेसे फायदा उठाना चाहिये। प्रसिद्ध पारसी प्रेमचंद रायचंदजी नेता बने। इस वक्त रूईके रोज़गारसे इन लोगोको ५१ करोड़ रुपये मिले।

ताताजी को भी इसमें बड़ा मुनाफा हुआ। लेकिन इन लोगोंको जितना फायदा हुआ उससे कहीं बढ़कर आगेकेलिये इन लोगोंने अन्दाजा लगाया था, कहीं बढ़कर तैयारी की थी।