कहते कम। स्वदेशी आन्दोलन उठाने वाले, स्वदेशी पर हजार दफे लेक्चर देनेवाले, उसके लिये कई बार राजदंड भोगे हुए सज्जनोंमें से एकने भी स्वदेशीको उतना अग्रसर नहीं किया जितना महाशय जमसेदजी नसरवानजी ताताने किया। लेकिन आपके कार्य्य करनेका ढंग ऐसा था कि राजा प्रजा दोनों आपसे प्रसन्न रहते थे। भारतीय प्रजा आपको पूजनीय बुद्धिसे देखती थी। भारत सरकार मुक्तकंठसे आपकी प्रशंसा करती थी और हमारे देशी रजवाड़े सदा आपकी सहायता करने को तैयार रहते थे।
ताता महोदय का जीवन उनलोगोंके लिये विशेष शिक्षाप्रद है जो समझते हैं कि अंगरेजी व्यापारियोंको बायकाट करके हमारी औद्योगिक उन्नति होसकती है। उनको समझना चाहिये कि भारतकी कारीगरीकी जो अधोगति होगई है, उसका सुधारना दो चार दिन या इनेगिने लोगोंका काम नहीं है। राजाप्रजा, विद्वान्, कारीगर और किसान सब मिलकर अगर काम करैं, तब भी बहुत दिनों में हालत कुछ कुछ दुरुस्त होसकती है।
महात्मा गांधीका विचार है कि कल कारखानोंकी आवश्यकता नहीं, रेलवे स्टीम और तारके कारण हमारा पतन होता जा रहा है। आपका कहना है कि प्राचीन ढंग पर हाथसे काम लेकर हम अपनी कारीगरी सुधार सकते हैं। ऐसे पूजनीय नेताकी बात कौन गलत कर सकता है?
अच्छी बात होती यदि कलियुगके स्थान पर फिर सत्ययुग