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पृष्ठ:जमसेदजी नसरवानजी ताता का जीवन चरित्र.djvu/४७

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जमसेदजी नसरवानजी ताता-


उसका दुखी मन प्राणायाम ही कर सकता है। सुविधायें होनेसे चित्तकी अशांति मिटती है। अशांति मिटनेसे मन स्थिर होता है, जिससे इहलोक परलोक दोनों बनता है।



चौथा अध्याय।


स्वर्गारोहण।

संसार चक्र बराबर चलता रहता है। जो बातें पहले देखी गई थीं वे आज नहीं दिखाई पड़ती हैं, जो आज हैं वे आगामी दिन परिवर्तित रूपमें मिलैंगी। गंगाकी तरंगोंमें जो बारिबुद उस दिन गंगोत्री पर पतली धारामें अठखेलियां करते थे वे हरद्वारमें हरकी पैड़ीके पास कलोलें करते पाये गये। उन्हींको थोड़े दिन बाद काशी मणिकर्णिका घाट पर जीवन मरणके गंभीर विचारमें आपने मग्न देखा था। अब वे कहां हैं? सबके पाप दोष धोकर, हमारे हृदयकी कालिमाको लेकर नील शोभा धारण करते हुए समुद्रकी गोदमें खेल रहे हैं। मनुष्यकी भी यही दशा है। बाल्यावस्था में हम नन्हेसे थे फिर किशोर होकर कर्मण्यता दिखलाई, अंतमें स्मशानकी अग्निमें भस्मस्नान करके नहीं, स्वयं भस्म होकर हम कृपा वारिधिकी पवित्र शरणमें लीन होते हैं। मिलकर एक होजाते हैं। हम भगवानसे मिल जाते हैं। आत्मा और परमात्माका भेद मिट जाता है।