क्या डर है! वे आनंदसे प्रत्येक स्थानमें मरनेको तैयार रहते हैं।
जिसने कर्मपथके यात्रियों को मार्ग दिखाया, अंधेरेमें भटकते हुएके लिये प्रकाश किया, सिसकते हुएका आंसू पोंछा, कराहते हुएको कलेजेसे लगाया, डूबते हुएको निकालकर बाहर खड़ा किया, सोते हुएको सचेत किया, जागते हुएको बैठाया, बैठेको खड़ा किया, खड़ेको चलाया, चलते हुएको कार्यमें सन्नद्ध किया ऐसे ही लोगोंका जीना और मरना धन्य है। हमारे चरित्र नायक महाशय जमसेदजी नसरवानजी ताता ऐसे ही महापुरुषोंमें थे। आपने इस छोटीसी पुस्तकमें देखा है कि ताताने एक साधारण पारसी कुलमें जन्म ग्रहण किया था और अपने लड़कपन हीसे किस परिश्रमसे काम करते हुए असंख्य धन जोड़कर उसको किस तरह परोपकारमें लगाया।
ऐसे लोग हर घड़ी मृत्युका स्वागत करते हैं। हम चाहते थे कि ऐसे महापुरुष और कुछ दिन तक हमको जगाते रहैं, उठाते रहैं, हमको कर्म पथपर चलाते रहैं। लेकिन परमात्मा हमारी रायसे काम नहीं करता है, वह न्यायशील, दयासागर सच्चिदानन्द जो अच्छा समझता है वही करता है। अंतमें हमको मालूम हो जाता है जो हमने सोचा था वह बात गलत थी, परम पिताने जो कुछ किया है अच्छे के लिये किया है, जो कुछ करता है हमारी भलाई के लिये करता है, सदा वह हमारा हित करेगा। अगर हम इस सिद्धांतको अच्छी तरह समझ लें,