पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/२३

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लिए कर्मचारियों को आज्ञा देकर आप, विल्फर्ड और एलिस को देखने के लिए भीतर चले आए।

किशोर सिंह स्वाभाविक दयालु थे और उनकी प्रजा उन्हें पिता के समान मानती थी और उनका उस प्रान्त में भी बड़ा सम्मान था। वह बहुत बड़े इलाकेदार होने के कारण छोटेसे राजा समझे जाते थे। उनका प्रेम सब पर बराबर था, किन्तु विल्फर्ड और सरला एलिस को भी बहुत चाहने लगे, क्योंकि प्रियतमा सुकुमारी की उन लोगों ने प्राण-रक्षा की थी।

 

किशोर सिंह भीतर आए। एलिस को देखकर कहा-डरने की कोई बात नहीं है। यह मेरी प्रजा थी, समीप के सुन्दरपुर गाँव में वे सब रहते हैं। उन्हें सिपाहियों ने लूट लिया है। उनका बन्दोबस्त कर दिया गया है। अब उन्हें कोई तकलीफ नहीं।

एलिस ने लम्बी साँस लेकर आँखें खोल दी, और कहा-क्या वे सब गए?

सुकुमारी-घबराओ मत, हम लोगों के रहते तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं हो सकता।

विल्फर्ड-क्या सिपाही रियासतों को लूट रहे हैं।

किशोर सिंह-हाँ, पर अब कोई डर नहीं है, वे लूटते हुए इधर से निकल गए।

विल्फर्ड-अब हमको कुछ डर नहीं है।

किशोर सिंह-आपने क्या सोचा?

विल्फर्ड-अब ये सब अपने भाइयों को लूटते हैं, तो शीघ्र ही अपने अत्याचार का फल पायेंगे और इनका किया कुछ न होगा।

किशोर सिंह ने गम्भीर होकर कहा-ठीक है।

एलिस ने कहा-मैं आज आप लोगों के संग भोजन करूंगी।

किशोर सिंह और सुकुमारी एक-दूसरे का मुख देखने लगे। फिर किशोर सिंह ने कहा -बहुत अच्छा।

 

साफ दालान में दो कम्बल अलग-अलग दूरी पर बिछा दिए गए हैं। एक पर किशोर सिंह बैठे थे और दूसरे पर विल्फर्ड और एलिस; पर एलिस की दृष्टि बार-बार सुकुमारी को खोज रही थी और वह बार-बार यही सोच रही थी कि किशोर सिंह के साथ सुकुमारी अभी नहीं बैठी।

थोड़ी देर में भोजन आया, पर खानसामा नहीं, स्वयं सुकुमारी एक थाल लिए है और तीन-चार औरतों के हाथों में भी खाद्य और पेय वस्तुएँ हैं। किशोर सिंह के इशारा करने पर सुकुमारी ने वह थाल एलिस के सामने रखा और इसी तरह विल्फर्ड और किशोर सिंह को परोस दिया गया, पर किसी ने भोजन आरम्भ नहीं किया।

एलिस ने सुकुमारी से कहा-आप क्या यहाँ भी न बैठेगी? क्या यहाँ भी कुर्सी है?

सुकुमारी-परोसेगा कौन?