पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/६६

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प्रकाश को आज अपने रोग पर क्रोध हुआ और पूर्ण मात्रा में हुआ, पर क्रोध धक्का खाकर पगली की ओर चला आया। प्रकाश ने आम देखकर ही समझ लिया और फूहड़ गालियों की बौछार से उसकी अभ्यर्थना की।

पगली ने कहा-"यह किस पाप का फल है? तू जानता है, इसे कौन खाएगा? बोल! कौन मरेगा? बोल! एक-दो-तीन।"

"चोरी को पागलपन में छिपाना चाहती है! अभी तो तुझे बीसों चाहने वाले मिलेंगे! चोरी क्यों करती है?"-प्रकाश ने कहा।

एक बार पगली का पागलपन, लाल वस्त्र पहनकर उसकी आँखों में नाच उठा। उसने आम तोड़-तोड़ कर प्रकाश के क्षय-जर्जर हृदय पर खींचकर मारते हुए गिना-एक-दो-तीन! प्रकाश तकिए पर चित्त लेटकर हिचकियाँ लेने लगा और पगली हँसते हुए गिनने लगी -एक-दो-तीन। उनकी प्रतिध्वनि अमराई में गूँज उठी।