पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/८९

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लैला!–मैंने अधीर होकर कहा।

मैं उसको एक बार देखना चाहती हूँ। उसने भी व्याकुलता से मेरी ओर देखते हुए कहा।

मैं उसे दिखा दूंगा; पर तुम उसकी कोई बुराई तो न करोगी?—मैंने कहा।

हुश!-कहकर लैला ने अपनी काली आँखें उठाकर मेरी ओर देखा। मैंने कहा-अच्छा लैला! मैं दिखा दूँगा। कल मुझसे यहीं मिलना!-कहती हुई वह अपने घोड़े पर सवार हो गई। उदास लैला के बोझ से वह घोड़ा भी धीरे-धीरे चलने लगा और लैला झुकी हुई-सी उस पर मानो किसी तरह बैठी थी।

मैं वहीं देर तक खड़ा रहा और फिर धीरे-धीरे अनिच्छापूर्वक पाठशाला की ओर लौटा। प्रज्ञासारथि पीपल के नीचे शिलाखंड पर बैठे थे। मिन्ना उनके पास खड़ा उनका मुँह देख रहा था। प्रज्ञासारथि की रहस्यपूर्ण हँसी आज अधिक उदार थी। मैंने देखा कि वह उदासीन विदेशी अपनी समस्या हल कर चुका है। बच्चों की चहल-पहल ने उसके जीवन में वांछित परिवर्तन ला दिया है। और मैं?

मैं कह चुका था, इसलिए दूसरे दिन लैला से भेंट करने पहुँचा। देखता हूँ कि वह पहले ही से वहाँ बैठी है। निराशा से उदास उसका मुँह आज पीला हो रहा था। उसने हँसने की चेष्टा नहीं की और न मैंने ही। उसने पछा-तो कब, कहाँ चलना होगा? मैं तो सरत में उससे मिली थी! वहीं उसने मेरी चिट्ठी का जवाब दिया था। अब कहाँ चलना होगा? मैं भौंचक-सा हो गया। लैला को विश्वास था कि सूरत, बम्बई, काश्मीर वह चाहे कहीं हो, मैं उसे लिवाकर चलूँगा ही और रामेश्वर से भेंट करा दूंगा। सम्भवत: उसने परिहास का यह दण्ड निर्धारित कर लिया था। मैं सोचने लगा-क्या कहूँ।

लैला ने फिर कहा-मैं उसकी बुराई न करूँगी, तुम डरो मत।

मैंने कहा-वह यहीं आ गया है। उसके बाल-बच्चे सब साथ हैं! लैला, तुम चलोगी?

वह एक बार सिर से पैर तक काँप उठी! और मैं भी घबरा गया। मेरे मन में नई आशंका हुई। आज मैं क्या दूसरी भूल करने जा रहा हूँ? उसने संभलकर कहा-हाँ चलूँगी, बाबू! मैंने गहरी दृष्टि से उसके मुँह की ओर देखा, तो अंधड़ नहीं किन्तु एक शीतल मलय का व्याकुल झोंका उसकी धुंघराली लटों के साथ खेल रहा था। मैंने कहा-अच्छा, मेरे पीछेपीछे चली आओ!

मैं चला और वह मेरे पीछे थी। जब पाठशाला के पास पहुँचा, तो मुझे हारमोनियम का स्वर और मधुर आलाप सुनाई पड़ा। मैं ठिठककर सुनने लगा-रमणी-कण्ठ की मधुर ध्वनि! मैंने देखा कि लैला की आँखें उस संगीत के नशे में मतवाली हो चली हैं। उधर देखता हूँ तो कमलो को गोद में लिये प्रज्ञासारथि भी झूम रहे हैं। अपने कमरे में मालती छोटे-से सफारी बाजे पर पीलू गा रही है और अच्छी तरह गा रही है। रामेश्वर लेटा हुआ उसके मुँह की ओर देख रहा है। पूर्ण तृप्ति! प्रसन्नता की माधुरी दोनों के मुँह पर खेल रही है! पास ही रंजन और मिन्ना बैठे हुए अपने माता और पिता को देख रहे हैं! हम लोगों के आने की बात कौन