समाप्ति लिखी। जिससे जाना जावे कि यह ३२ पृष्ठ उसके लिखे हुए हैं।
बादशाह लिखता है--मैं हिन्दुस्थानमें बड़ा हुआ हूं तो भी तुरकी भाषा बोलने और लिखने में असमर्थ नहीं हूं। (१)
काबुल में पर्य्यटन।
२५ (अषाढ़ बदी) को बादशाह बेगमों सहित जलगाह सफेदसंगके देखनेको गया। जो अति सुरम्य और प्रफुल्लित बन था।
२६ (अषाढ़ बदी १३) शुक्रवारको बाबर बादशाहकी जियारत करने गया बहुतसा सीरा रोटी और रुपये पितृगणको पुण्य पहुं- चानेके लिये फकोरोंको बांटे। मिरजा, हिन्दालकी बेटी रूकैया सुलतान बेगमने अबतक बापकी जियारत नहीं की थी। अब वह भी करके कृतार्थ हुई। मिरजा हिन्दालकी कबर भी वहीं थी।
३ रबीउलअब्बल (अषाढ़ सुदी ४) गुरुवारकों शाहजादीं और अमीरोंने खासेके घोड़े दौड़ाये। एक अरबी बछेरा जो दक्षिणके शाह आदिलखानने भेजा था सब घोडोंसे अच्छा दौड़ा।
हजारेके सरदार मिरजा संजर और मिरजा बाशीके बेटे हाजिर हुए जंग नाम जानवरोंको तीरोंसे मारकर लाये थे वैसे बड़े जंग बादशाहने नहीं देखे थे।
बुन्देले।
वरसिंह देव बुन्देलेकी अरजी आई कि मैंने अपने फसादी भतीजेको पकड़ लिया है तथा उसके कई आदमी मार डाले हैं। बादशाहने आज्ञादी कि उसे गवालियरके किलेमें कैद रखने के लिये भेजदो।
खुसरोका छूटना।
१२ (असाढ़ सुदी १३) को बादशाहने खुसरोको बुलाकर
(१) वाकेआत बाबरी भी तुरकीमें है।