पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१०६

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जहांगीरनामा।

अरजी जहांगीर कुलीखांको पत्र सहित जो बिहारसे आया था आगरसे दरबार में पहुंची। उसमें लिखा था कि ३ सफर (जेठ सुदी ५) को पहर दिन चढ़े वर्दवानमें अलीकुलीने कुतुबुद्दीनखांको जखमी किया जिससे वह आधीरातको मर गया। यह अलीकुली ईरान के शाह इसमाइलका रसोइया था। शाहके मरे पीछे कुटिलप्रकृति मे कन्धारमें भाग आया। वहांसे मुलतानमें पहुंचकर खानखानां से मिला जबकि वह ठठ्ठे के ऊपर जाता था। उसने अलीकुलीखांको बादशाही चाकरी में रख लिया। फिर जब अकबर बादशाह दक्षिण जीतनेको जाता था और जहांगीर बादशाहको रानाके ऊयर जानेका हुक्म दिया था तब वह जहांगीसे मिला। जहांगीरने तब तो उसे शेरअफगनका खिताब दिया था और राजसिंहासन पर बैठने के पीछे बंगालेमें जागीर देकर भेज दिया। वहांसे लिखा आया कि ऐसे दुष्टको इस देशमें रखना उचित नहीं है। इस पर कुतुबुद्दीनखांको लिखा गया कि अलीकुलोखांको हजूरमें भेजे। और जो वह दंगा करे तो दण्ड दे। कुतुबुद्दीनखां तुरन्त उसकी जागीर वर्दवानमें गया। वह दो पुरुषोंसे अगवानीको आया तो खानके नौकरोंने उसे घेर लिया। तब उसने खानसे कहा कि तेरी यह क्या चाल बदल गई है? खानने अपने आदमियोंको अलगकर दिया और बादशाही हुक्म समझानेके लिये अकेला उसके साथ हो गया। उसने तलवार निकालकर दो तीन घाव खानके लगाये और अम्बाखां काशमीरीको भी जो सहायताके लिये आया था जखमी किया। फिर तो कुतुबुद्दीनखांके चाकरोंने उसको भी मार डाला। अम्बाखां उसी जगह मर गया और कुतुबुद्दीनखां चार पहर पौछे अपने डेरेमें मरा।

बादशाह लिखता है--"कुतुबुद्दीनखां कोका प्रियपुत्र भाई और परम मित्रकी जगह था। पर ईश्वरको इच्छा पर कुछ वश नहीं लाचार सन्तोष किया। पिताको मृत्यु के पीछे कोका और उसको माताके दुःखके समान और दुःख मुझ पर नहीं पड़ा।