काम करनेके इनाममें मिरजागाजीका मनसब पूरा पांच हजारी और पांच हजार सवारका होगया। टठ्ठेका सारा देश उसके पट्टेमें था तोभी सुलतानके सूबेमें कुछ जागीर उसको मिली। कन्धारकी हुकूमत भी जो सीमा प्रान्तका सूबा था उसको समर्पित हुई। बिदा होते समय तलवार और सिरोपाव भी मिला यह मिरजा फारसी भाषाका कवि भी था।
खानखानाकी भेट।
१५ (माघ बदी ३) को खानखानांकी भेट बुरहानपुरसे पहुंची ४० हाथी कुछ जवाहिर कुछ जड़ाऊ चीजें तथा विलायत और दक्षिणके बने हुए कपड़े थे। सबका मूल्य डेढ़ लाख रुपये हुआ। ऐसीही उत्तम भेटें दूसरे अमीरोंने भी भेजी थीं जो उस देशमें नौकरी पर थे।
राय दुर्गाकी मृत्यु।
१८ (माघ बदी ५) को राय दुर्गाके मरनेको खबर पहुंची। बादशाह लिखता है कि यह मेरे पिताका बड़ा किया हुआ था। ४० वर्षसे अधिक उनकी सेवामें रहा और बढ़ते बढ़ते चार हजारी मनसब तक पहुंचा। मेरे पिताको सेवामें आनेसे पहिले राना उदयसिंहका प्रतिष्ठित सेवक था और सिपाहगरीकी समझ अच्छी रखता था।
सुलतानशाह पठान।
खुसरोका भेदू सुलतानशाह पठान खिजराबादके पहाड़से पकड़ा आया। बादशाहने उसको लाहोरको मैदानमें तीरोंसे मरवा डाला।
मुहम्मदअमीनसे मिलना।
१ शब्बाल (माघ सुदी २) को बादशाह मुहम्मदअमीन नामक एक साधुसे जाकर मिला और उसके उपदेशसे सन्तुष्ट होकर एक हजार बीघे जमीन और एक हजार रुपये देआया। हुमायूं बादशाह भी इस साधुसे बहुत भाव रखता था।