पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४५
संवत् १६६८।

चौथे चित्रमें एक वृक्ष था उसके नीचे पैगम्बर थे। उनके पांव पर सिर रखे हुए था। एक बूढ़ा उनसे बा था चार आदमी और खड़े थे।

बादशाह लिखता है--"एसी कारीगरी अबतक मैंने न देखी थी न सुनी इस वास्ते उसको इनाम दिया और वेतन बढ़ाया।"

३० शहरेवर (भादों सुदी १५) को मिरजा सुलतान दक्षिणने बुलाया हुआ आया। सफदरखांको मनसब बढ़ाकर उस सेनाकी सहायताके वास्ते भेजा जो रानाके ऊपर गई थी।

रामदास कछवाहा।

अबदुल्लहखां बहादुर फीरोजजंगने यह इरादा किया था कि नासिकके मार्गसे दक्षिण में जावे। बादशाह लिखता है--मेरे मनमें यह आया कि रामदास काछवाहेको जो मेरे बापके स्वामि- अत सेवकोंमेंसे है उसके साथ कलं। वह सब जगह उसकी हिफा- भक्त रखे। अनुचित साहस और जल्दी न करने दे। इसके लिये मैंने उस पर बड़ी कृपा की। उसे राजाकी उपाधि दी जिसका उसे ध्यान भी न था। उसे नक्कारा दिया और रणथम्भोरका प्रसिद्ध किला दिया। उत्तम खिलत और हाथी घोड़े देकर बिदा किया।

राजा कल्याण।

बादशाहने बंगालके सूबेदार इसलामखांक लिखनेसे सरकार उड़ीसाकी सरदारी राजा कल्याणको दी। दो सदी जात और दो हजार सवार भी उसके मनसबमें बढ़ाये।

तूरान।

तूरानमें गड़बड़ होनेसे बहुतसे उजबक सरदार और सिपाही बादशाहकी सेवामें आये बादशाहने सबको सिरोपाव घोड़े मनसब रुपये और जागीर देकर नौकर रख लिया।

दक्षिणकी लड़ाई।

२ आजर (अगहन बदी ५) को पांच लाख रुपये रूपखवास और शैख अंबियाके हाथ अहमदाबादकी उस सेनाकी सहायताके वास्ते

[ १३ ]