पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२०३

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संवत् १६७१ ।

१८ (कार्तिक सुदी ११) को सिकन्दर मंकीन किरावलको लाश उदयपुरसे जहां खुर्रमके डेरे थे अजमेर में आई। यह पुराना नौकर था इलिये बादशाहने हुक्म दिया कि सब किरावल साथ जाकर आना सागर(१)के तट पर गाड़ देवें ।

१२ आजर (अगहन सुदी ३) को २ लड़कियां (जो इसलामखां ने कोचके जमींदारोंसे, जिनको विलायत पूर्वके अन्तिम सीमा पर है ली थी) और ८४ हाथी भेष्ट हुए और उसके बेटे होशंगने दो हाथौ सौ मोहर और एक सौ रुपये नजर किये।

सपना।

बादशाहने एक रात अपने पिताको सपने में यह कहते हुए देखा कि बाबा खानाजम अजीजखांके गुनाह मेरी खातिरसे बख्श दे।

नूर चशमा।

"अजमेरको तलहटीमें हाफिज जमालके नाम एक दरा और चश्मा प्रसिद्ध हैं बादशाहने उस सुरम्य स्थानको पसन्द करके वहांक योग्य राजभवन बनागेका हुक्म दिया था। एक वर्ष में ऐसा उत्तम भवन बना कि पृथ्वी पर्यटन करनेवाले उसके ममान कोई स्थान नहीं बताते थे। वहां ४० गज लम्बा और उतनाही चौड़ा एक झालरा निर्माण हुआ था जिसमें चशमका पानी फव्वारसे डाला गया था। इसका पानी १०११२ गज ऊचा उछलकर गिरता था। झालरके ऊपर बैठकें बनी थीं। : ऐसेही जपरके खण्डमें भी जहां तालाब और चश्मा था मनोहर मन्दिर सुखद सदन और ऊंचे झरोखे झके थे कईएकमें तो चतुर चित्रकारोंने विचित्र चित्र- कारी की थी। बादशाहने उस स्थानका नाम नरचश्या रखा जो उसके नाम नूरुद्दीनसे मिलता हुआ था। वह लिखता है-"इसमें यही दोष है कि किसी बड़े नगर में या ऐसी जगह पर न · हुआ


(१) आना सागरका नाम सना शंकर तु० ज० में लेखको दोषसे लिखा गया है।