पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२१७

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संवत्१६७२।

मारता हूं तोभी इस विचारस कि कदाचित कुँवरके जाने तक सिंह न मिले, उसो सिंहजीके ऊपर गया। कर्ण भी साथ था। उससे कहा कि जिप्त जगह तू कई मैं उसी जगह उसके गोली मारू। उसने अांख पर मारनेको कहा। जहां वह सिंहनी घेरी हुई थी वहां पहुंचे तो पवन प्रचण्ड वेगसे चलने लगा और मेरी हथिनी भी सिंहनजीके भयसे एक जगह नहीं ठहरती थी। इन दोनों बड़ी बाबा के होते हुए भी मैंने उसकी आंखको ताककर बंदूक चलाई ।परमेश्वरने अपनी कृपासे मुझे उस राजकुमारके सामने लज्जित नहीं किया क्योंकि मैने उसकी आंखमें गोली मारकर गिरा दिया।

कर्णने इसी दिन खानेकी वंदूबा मांगी तो मैंने अपनी रूमी बंदूक उसको इनायत को।"

८ उर्दबहित (बैशाख सुदी १) को बादशाहका सौम तुलादान हुआ।

(बैशाख सुदी २) को खानआजम बादशाहके हुक्मसे आगरेसे (जो वह गवालियरसे छूटकर आगया था) दरबार में लाया गया। उमसे कई अपराध किये थे तोभी बादशाह ही उसको देखकर लजित हुआ। उसने अपनी शाल उसको ओढ़ादी और उसके सब अपराध क्षमा कर दिये।

कर्णको एक लाख दरब इनायत हुए।

इसी दिन राजा सूरजसिंहने रणरावत नामक एक बड़ा हाथी जो उसके नामो हाथियोंमेंसे था लाकर नजर किया। बादशाहने उसको बड़ा अनोखा देखकर अपने निजके हाथियोंमें रखवा लिया।

१२ (बैशाख सुदी ४) को राजा सूरजसिंहने फिर सात हाथी भेट किये। वह भी शाही हाथियोंमें शामिल किये गये।

बखतरखा चार महीने तक बादशाहकी सेवामें रहकर बिदा हुआ। बादशाहने आदिलखांको कहनेके लिये उससे बहुत ही