अनन्दंखां तमूरची।
शौकी तमूरा बजानेवालेको बादशाहने आनन्दखांकी उपाधि दी। बादशाह लिखता है-यह तमूरा बजाने में अजीब है और हिन्दी फारसी गतीको ऐसा बजाता है कि दिलोंके दुःख दूर कर देता है। इस लिये मैने इसको आनन्दखांका खिताब दिया। हिन्दी भाषामें आनन्दका अर्थ खुशी है और खुशौके दिन हिन्दुस्थान में तौर महीने (बैशाख जेठ) से आगे नहीं होते। राना और कर्णकी मूर्ति ।
बादशाहने राना और उसके बेटे कर्णको सर्वाङ्ग मूर्तियां सफेद पत्थरों से गढ़नेको सिलावटोंको आज्ञा दी थी । वह तैयार होकर १०(प्र० आश्विन बदौ ४) को बादशाहके पास आई। बादशाहने देखकर हुक्म दिया कि आगरे में लेजाकर दर्शनके झरोखेके नीचे बाग में खड़ी कर देवें।
तुलादान।
२६ (प्रथम आखिन सुदी ६)को बादशाहके सौर पक्षीय जन्म दिवसका पहिला तुलादान सोने का दूसरा पारका तीसरा रेशमका चौथा अब्बर कस्तूरी चन्दन और लोबान शादि सुगन्धिब द्रव्यका हुआ। इसी प्रकार १२ तुलादान बहुमूल्य पदार्थोके होते थे जिन का मूल्य एक लाख रुपयेसे कम नहीं होता था। इसके सिवा बादशाह बकरे और मुरगे अपनी उमरके वर्षों के बराबर छू.छू कर फकौरोको देता।
महाबतखांकी भेंट।
उसी दिन महाबतखाने एक लाल जो ६५०००) में अबदुल्लह खांसे बुरहानपुर में खरीदा था बादशाहको भेंट किया। खानआजम और दियानतखां, ।
खानआजमका मनसब सात हजारो हुआ और उसके अनुसार
आगरेमें अब यह मूर्तियां नहीं हैं. होती तो चीजें बहुत अनोखी थीं।