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जहांगीरनामा।

पहलवान “पाये तख्त”।

बादशाहने बीजापुरके दूतोंको विदा करते समय कहा था कि तुम्हारे यहां कोई नामी पहलवान या खांडत हो तो आदिलखांसे कहकर हमारे वास्ते भिजवाना। बहुत दिन पोछे दूत फिरकर आये तो शेरअली पहलवान और कई खांडेतीको साथ लाये । खांडत तो कुछ यौहौस निकले पर शेरअलौने कुश्ती में बादशाही पहलवानोंको पछाड़ दिया। बादशाहने उसको एक हजार रूपये सिरोपाव, हामी, मनसब जागौर सहित देकर अपने पास रखलिया और पहलवान “पाये तख्त" का खिताब दिया।

दियानतखां।

२४ (द्वितीय आखिन सुदी ६) को दियानतखा. अबदुल्लहखां को लेकर आया और एकसौ मोहरे भेंट की।

रामदास।

इसी दिन राजा राजसिंहके बेटे रामदासको हजारो जात और पांच सौ सवारोंका मनसब मिला।

अवदुल्लहवां फौरोज़जङ्ग।

२६ (द्वितीय आखिन सुदी ८) को बाबा खुर्रमको सिफारिशसे. अबदुलहखांका मुजरा हुआ। बहुत सङ्कोच और पछतावेके साथ उसने एकसौ मोहरें और एक हजार रुपये भेंट किये।

बीजापुरके दूत।।

बादशाहने बीजापुरके दूतोंके पहुंचनेसे पहले निश्चय कर लिया था कि खुर्रमको आगे भेजकर आप भी दक्षिणको प्रयाण करें और बिगड़े हुए कामको सम्हालें। यह भी हुका दे रखा था कि दक्षिणके दुनियादारोंकी बात खुर्रमके सिवा और कोई न करे। इसलिये शाहजादा खुरंम उस दिन बीजापुरके दूतीको हुजूरमें लेगया। वह लोग जो प्रार्थनापत्र लाये थे वह भी बादशाहको दिखाये।

राजा मान और कांगड़ेको मुहिम ।।

मुरतिजाखांके मरे पोछे राजा मान और दूसरे सहायक सरदार