सारसोंकी पुकार।
२७ (अगहन सुदी २) को बादशाह शिकार खेलता सवा तीन कोस चलकर देवगांवमें उतरा। यहां यह विचित्र बात उसके देखनमें आई कि सवारो आनेसे पहले एक खोजा तालाबसे दो बच्चे सारसके पकड़ लाया था। रातको दो सारस गुसलखानेके पास जो उसी बड़े तालाब पर लगाया गया था चिल्लाते हुए आये और निर्भय होकर फरयादीको भांति पुकारने लगे। बादशाहने अपने दिलमें कहा कि अवश्य इनके ऊपर अन्याय हुआ है। शायद कोई इनके बच्चे पकड़ लाया होगा। जब इस बातकी खोज की गई तो उस खोजेने वह दोनो बच्चे लाकर भेंट किये। ज्योंही सारसोंने बच्चोंको बोली सुनो दौड़कर उनके ऊपर आगिर और भूखा समझकर अपनी चोंचसे चुग्गा उनके मुंहमें देने लगे। फिर उनको बीच में लेकर पर फटकारते हुए प्रसन्नतापूर्वक चले गये।
२३ (अगहन सुदी ६) को देवगांवसे कूच होकर सवातीन कोस पर गांव मालूमें दो दिन तक सवारी ठहरौ।
२६ (अगहन सुदी १०) को दो हो कोसको मञ्जिल हुई बाद. शाह दो दिन गांव काकलमें ठहरा।
२८ (अगहन सुदौ १२) को (उस दिन त्रयोदशी भी थौ) पौने तीन कोस सवारो चलो और गांव लासेमें पड़ाव हुआ। इसी दिन बकराईद भी थी।
३० (अगहन झुदी १४) को “अजर का महीना पूरा हुआ। वादशाहने अजमेर छोड़नेके पीछे इस महीने में ६७: नील गायें तथा हरन और ३७ मुर्गाबियां और जलकी मार थे।
२६ (पौष बदौ १) को लाससे डेरे उखड़े। तीन कोस दस नरौब पर गांव कानड़े में लगे ।
४ (दूसरी तौज) को कूच होकर सवा तीन कोस गांव सूरठमें सुकाम. हुआ। चौथ को साढ़े चार कोस पर गांव बरदड़ामें सवारी उतरी।