पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२५७

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तेरहवां वर्ष ।

सन् १०२६ हिजरी।

अगहन सुदौ २ संवत् १६७३ से पौंष सुदी २ सं० १६७४ तक । ता० ३ दिसम्बर सन् १६१६ से ता० १८ नवम्बर १६१७ तक।

२० (पौष सुदी ११) को सवा चार कोस चलकर गांव 'वरधामें दो मुकाम हुए पौष सुदी १३ को दे का महीना पूरा हुआ। इस महीन- ४९६ पशु पक्षी शिकार हुए थे।

तीतर ८७ मारस जन्न कव्वे १८२ करवानकं मुरगावी ११८ खरगोश

१२ मुहर्रम १ बहमन (पौष सुदी १४) को बादशाह बेगमों सहित नावों में बैठकर एक घड़ी दिन रहे गांव रूपहेड़ेमें उतरा। चार कोस पन्द्रह डोरी चला था। यह भी बहुत रोचक और सुरम्य स्थान था।

इन दिनों में वादशाहने “कोजगना" नाम सेवकके हाथ दक्षिण में २१ अमीरोंको जड़ावल भेजी और उसकी बधाई में उनले दो हजार रुपये लेनेको आज्ञा हुई।

३ (माघ बदी १) को फिर बादशाह नावों में बैठकर मवा दो कोस पर गांव काखावासमें उतरा। यहां एक विचित्र घटना देखनेमें आई। बादशाहने रास्तेमें एक तौतरके पकड़नेका हुन दिया था और दूसरा तीतर बाज हारा पकड़वाया था। जब डेरे पर पहुंचा तो पहला तीतर भी पकड़ा आया। उसको देखकर फरमाथा कि इसे तो बाजको खिलादो और दूसरेको रहने दो क्योंकि वह जवान है। परन्तु इस हुक्मके पहुंचनेसे पहलेही वह तीतर बाजको खिला दिया गया था। तब इस तौतरके लिये घड़ी भर पीछे ही शिकारीने अर्ज की कि जो इसे मैं नहीं मारूंगा तो यह

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