सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२४९
संवत् १६७३।

मंवत १६०३। a n ...AAA- - - - - - - - arrrrrrrrr. n-crmon लेता है उसको सात वर्ष तक ब्राह्मण नहीं कहते न कोई बन्धन उनके वाते है। जन अाठवां वर्ष लगता है तो एक सभा रचकर ब्राह्मणों को बुलाते हैं जो मन पढ़कर सुजको सवादो गज लम्बी 'एक रस्सीम तीन गांठें अपने पूज्य तीन देवताओंके जामको लगाते हैं और उस लड़केको कटिमें बांधते हैं। फिर कच्चे सूतका जनज बटकर उसके दहने कन्धेर्मे बधौकी भांति डालते हैं और एक गजसे कुछ अधिक लम्बी लकड़ी और एक कमण्डल आत्मरक्षा और पानी पौने लिये उसके हाथमें देकर उसे किसी विद्वान ब्राह्मणको मौंप देते हैं। वह बारह वर्ष तक उसके घरमें रहकर वेद पढ़ता है। उस दिनसे वह ब्राह्मण कहलाता है उसका यह कर्तव्य है कि भूलकर भी विषयवासनामें न पड़े। जब आधा दिन बीत जावे तो किमी दूमरे ब्राह्मणके घर में जाकर जो कुछ भिक्षा मिले गुरुके पास ले आवे और उसकी आज्ञासे (आप भी) भक्षण करे और सिवा एक लङ्गोटौ और दो तीन गज गजौके और कुछ कपड़ा अपने पास न रखे। इस अवस्थाको ब्रह्मचर्य अर्थात् वेदपाठ कहते हैं। इसके पीछे गुरु और पिताको आज्ञासे विवाह करे और जबतक पुत्र न हो पांचों इन्द्रियोंका सुख भोगे। · पुत्र न होनेको दशामें ४८ वर्ष की उमर तक पांचों इन्द्रियोंके राख भोगनेका निषेध नहीं है। इस दशाको ग्रहस्थाश्रम कहते हैं। इसके पीछे भाई बन्धु इष्ट मित्र तथा भोग विलासको छोड़कर.घरसे निकल जाना और जङ्गलमें रहना पड़ता है. इसका नाम. वाणप्रस्था है। हिन्दुओंमें यह भी विधान है कि धर्मका कोई काम. बिना स्त्रीके जिसको अर्द्धांगिनी बोलते हैं सिद्ध नहीं होता है और, वाणप्रस्थाश्रमामें भी कई कृत्य: करने पड़ते हैं इसलिये स्त्रीको साथ लेजाना आवश्यक है। पर वह गर्भवती हो तो घर रहे। जब बालक जन्नो और पांच वर्षका होजावे तो उसे बड़े पुत्र या कुटम्बियोको सौंपकर सपनौक वाणप्रस्थमें होजावे और ऐसाही स्त्रोके रजखला होनेपरभी करे जब तक कि वह पवित्र न होजावे। वाणग्रस्थ हुए पीछे स्त्रीका सङ्ग न