२५६ जहांगीरनामा और परलोकमें जिसका काला मुंह हुआ ऐसे नसीरुद्दीनकी कबर भी वहीं थी। यह प्रसिद्ध है कि इस कपूतने अपने ८० वर्षेके बूढ़े बाप सुलतान गयासुद्दौनको दोबार विष दिया जो उसने अपने भुजबन्दके जहरमोहरीसे मार दिया। तीसरी बार फिर उसने शर- बतमें जहर मिलाकर अपने हाथसे बापको दिया कि इसको पो जाना चाहिये। बापने जब उसका यह आग्रह उस काममें देखा तो जहरमोहरा भुजासे खोलकर उसके आगे डाल दिया और पर- मेश्वरको दण्डवत करके कहा कि हे प्रभो ! मैं ८० वर्षका होगया हूं मैने अपनी अवस्थाको बड़े ऐश्वर्य और सुखचैनमें बिताया है वैसा सुख किसौ बादशाशको प्राप्त नहीं हुआ. अब मेरा अन्तिम समय था पहुंचा है इसलिये यह प्रार्थना करता हूं कि नसौरको मेरे खूनमें न पकड़ना और मेरी मृत्युको खाभाविक मानकर उसको दण्ड न देना। यह कहकर उसने वह विष मिश्रित शरबत पौलिया और प्राण देदिया। .... ........::.:. . . . इस बातके कहनेसे कि मैंने अपने राजत्वकालको ऐसे सुख और बिलासमें व्यतीत किया है जो किसी बादशाहके भाग्यमें नहीं था उसका यह अभिप्राय था कि. जब वह ४८ वर्षको अवस्थामें सिंहा- सनारूढ़ हुआ तो अपने मित्रोंसे कहा कि मैंने बापके राज्यमें तीस वर्ष खूब लड़ाइयां की हैं और परिश्रम करनेमें कुछ कसर नहीं रखी है। अब मुंभे राज्य मिला है .मेरा विचार किसी मुल्कके लेनका नहीं है। मैं चाहता हूं कि शेषावस्था सुख चैनमें व्यतीत करूं। कहते हैं कि उसने पन्द्रह हजारं स्त्रियां अपने रनवासमें भरती करके उनका एक गांव बसा दिया था। उसमें हाकिम पेशकार काजौ कोतवाल आदि कर्मचारी जो एक नगरीके प्रवन्धके लिये श्रा- वश्यक होते हैं सब स्त्रियोंमेंसेही नियत किये थे। वह जहां कहीं सुन्दरदासी सुनता जबतक उसको हस्तगत न कर लेता निश्चिन्त न बैठता । उसने नानाप्रकारको विद्या और कलाएं उन दासियोंको
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