कहा कि हमने आजतक एक जहानको तलवारसे फतह किया है मगर कभी अपने हजूरमें बकरेकी भी खाल उधेड़नेका हुक्म नहीं दिया और हमारा बेटा अजब सङ्गदिल है जो अपने सामने आदमीकी खाल खिचवाता है।
इन्हीं लोगोंने यह भी अर्ज की थी कि शाह अफीमको शराब में घोलकर इतनी जियादा पीते हैं कि जिसको तबीअत भी वर- दाश्त नहीं कर सकती है और फिर जब नशा चढ़ता है तो ऐसेही ऐसे शर्मिन्दा करनेवाले हुक्म देते हैं। उस वक्त किसीको कुछ कहने को मजाल नहीं होती अकसर लोग तो भागकर छुप जाते हैं और जिनको हाजिर रहनाही पड़ता है वह बेचार दीवारकी तसवीरसे वने रहते हैं। बादशाहको बेटेसे बहुत मुहब्बत थी इसलिये इन बातोंसे घबराकर उसने यही मुनासिब समझा कि खुद इलाहाबाद जाकर बेटेको साथ आवे।
इस इरादेसे ४ शहरेवर सन् १०१२ (भादों वदी १३) की रात को नावमें बैठकर रवाने हुआ। मगर नाव जमीनमें बैठ गई मल्लाह बहुत पचे पर नावको उस आधीरातमें पानीके अन्दर न लेजा सके इसलिये लाचार तड़के तक जमनामें ठहरना पड़ा। दिन जिकलते निकलते बड़े बड़े अमीर अपनी अपनी नावोंको बढ़ाकर सलाम करने आये। अक्सर स्याने आदमियोंको समझमें यह शकुन अच्छा न था तोमी बादशाहके डरसे कोई लौट चलनेको अर्ज नहीं कर सकता था।
बादशाह यहांसे चलकर डेरोंमें आये जो ३ कोस पर जमनाके किनारे लगे थे। उस समय मेह बड़े जोरसे बरसने लगा और साथही मरयममकानी वेगमके बीमार होजानेकी खबर आई जो बादशाहके जाने पर राजी नहीं थी। मह दो तीन दिन तक लगातार बरसता रहा जिससे किसीका भी डेरा खड़ा न होसका। बादशाह तथा पासके और कई नौकरोंके सिवा किसीकी कनात नजर नहीं आती थी।