पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३१

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शाहजादा सलीम।

खुसरो और कई चुगल खोरोंने जाकर बादशाहसे शाहके आदमियोंको गुस्ताखी और महावतके जखमी करनेका हाल बहुत बढ़ाकर कहा। जिससे बादशाहने बिगड़कर शाहजादे खुर्रमको फरमाया कि तुम शाह माईके पास जाकर कहो—शाह बाबा फरमाते हैं कि यह हाथी भी हकीकतमें तुम्हाराही है फिर इतनी जियादती करनेका क्या सबब है ?

शाहजादे खुर्रमने जाकर दादाका हुक्म बापसे इस खूबीके साथ कहा कि सलीमको जवाब में कहना पड़ा,--मुझे हरगिज इस बातकी खबर नहीं है। मैं हाथी और महावतको मारने से भी राजी नहीं हुआ हूं और न मैंने हुक्म दिया।

खुर्रमने अरज की कि यदि ऐसा है तो मुझे हुक्म होजावे मैं खुद जाकर आतिशबाजी और दूसरी तदबीरोंसे हाथियोंको अलग करदूं।

सलीमने खुशीसे उसको इजाजत देदी और उसने चरखी और बान छोड़ने का हुका दिया। और भी कई दूसरी तरकीबें कोगईं मगर कुछ न हुआ। आखिर रणथंभण भी हारकर भागगया और अब वह दोनों हाथो लड़ते लड़ते यमुनामें चले गये ! गरांबार आपरूपसे लिपटा हुआ था और किसी तरहसे उसे नहीं छोड़ता था। अन्तको एक बड़ी नाक्के बीचमें आजानेसे अलग होगया।

शाहजादे खुर्रमने दादाके पास जाकर विनयको कि शाहभाईने जो ऐसी जुरअत और गुस्ताखीका हुक्म नहीं दिया था न उनके जानते ऐसा काम हुआ। असल बात हुजूरके सामने कुछ फेरफार से अर्ज कीगई है।

२० जमादिउलअब्बल (कार्तिक वदी ७) को बादशाह बीमार हुआ। पहिले वुखार हुआ फिर दस्त आनेलगे हकीम अलीने बहुत इलाज किया पर कोई दवा न लगी।