कूचका राजा।
२६ शक्रवार (चैव बदौ ५) को ५॥ कोस पर गांव जालोदमें डेरे हुए। बादशाहने कूचनरेशके चचा लक्ष्मीनारायणको जिसे अब गुजरातका मुल्क दिया गया था घोड़ा दिया ।
लंगूरका बच्चा और बकरी ।
२८ रविवार (चैत्र बदौ ७) को बादशाह पांच कोस चलकर कमवे दोहदमें ठहरा जो गुजरात और मालवेको सीमा पर है। यहां पहलवान बहाउहीन बरकन्दाजने एक लंगूरका बच्चा बकरीके साथ लाकर प्रार्थना की कि रास्ते में मेरे एक निर्दयी तोपचौने किसी वृक्ष पर लंगूरनौको गोदमें बच्चा लिये देखकर बन्दूक मारी। लंगूरनी गोली लगतेही बच्चे को एक डालो पर छोड़कर गिर पड़ी और मर गई । मैं उस बच्चेको उतारकर इस बकरीके पास लेगया । परमेश्वरने बकरीके दिल में दया उपजाई वह उसको चाटने लगी और विभिन्न जाति होने पर भी इसको लंगूरके बच्चेसे ऐसा मोह होगया है कि जैसे पेटका बच्चा हो।
बादशाह लिखता है-“मैंने बच्चे को बकरीसे अलग कराया तो वह व्याकुल होकर चिल्लाने लगी। उधर बच्चा भी बहुत घबराया। लंगूरके बच्चे का मोह तो जो दूध पीनेसे है उतना अधिक विस्मयजनक नहीं है जितना बकरीका मोह लंगूरके बच्चे के साथ होनेसे होता है और इसी आश्चर्यसे यह बात लिखी गई है।
२९ सोम और ३० मंगल (चैत्र बदौ ८ और ९) को भी वहीं डेरे रहे।
इति प्रथम भाग समाप्त ।
बादशाहकी आज्ञा।
"मैंने आज्ञा की कि इस बारह वर्षके वृत्तान्तका एक अन्य बना कर कई प्रतियां तैयार करें जिन्हें मैं निज सेवकोंको दूं और समग्र देशों में भेजूं और राजवर्गीय तथा विहान लोग इसको अपने कामोंका पथदर्शक बनावें।"