जहांगीर बादशाह। पहला वर्ष । सन् १०१४। अगहन बदी १ गुरुवार संवत् १६६२ से वैशाख सुदी १ चन्द्रवार सं० १६६३ तक। बादशाह लिखते हैं कि मैं ईश्वरके अति अनुग्रहसे गुरुवार ८ (१) जमादिउस्मानी सन् १०१४ को एक घण्टा दिन चढ़े ३८ वर्षको अवस्था में राजधानी आगर में तख्त पर बैठा। मेरे बापके २८ वर्षको आयु होने तक कोई पुन जौता न था। इस लिये वह सन्तानके वास्ते फकीरों से प्रार्थना किया करते थे और उन्होंने अपने मनमें यह प्रतिज्ञा की थी कि अब जो कोई लड़का होगा तो पैदल खाजाजीको यात्राको जाऊंगा। उस समय शैख सलीम नाम एक महात्मा सोकरौके पहाड़में रहता था। उधरके मनुष्योंको उसमें बहुत श्रद्धा थी। मेरे पिता भी उसके पास गये और एक दिन उसको अपने अनुकूल देखकर पूछा कि मेरे कितने पुत्र होंगे ? उसने कहा कि परमेश्वर आपको तीन पुत्र देगा । पिताने कहा कि मैं प्रथम पुत्रको तुम्हारे चरणों में डालूंगा। शैखने कहा हमने उसको अपना नाम दिया। (१) ८ गुरुवारको तिथि लेखके दोषसे या और किसी भूलसे मूलमें गलत लिखी गई है। क्योंकि जब अकबर बादशाहको मृत्यु १४को हुई थी तो सलीम उससे पहलेही ८ को किस रीतिसे तख्त पर बैठ सकता था। इकबालनामये जहांगौरीमें १५ जमादिउस्मानी गुरुवार लिखी है, यह तारीख सही मालूम देती है। पञ्चांगके हिसाबसे १३ या १४ होती है सो यह चन्द्रदर्शनका
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