पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/५५

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जहांगीर बादशाह सं० १६६२ ।

शाहने अमीरुलडमरासे कहा कि जबतक इनकी जामिनी न हो तबतक वह किसीके हवाले कर दिये जावें। अमीरुलउमराने उन को इब्राहीमखां काकड़ और शाहनवाजखांको सौंप दिया। उन्होंने इनके हथियार लेना चाहा तो यह लड़नेको तय्यार हुए। अमी- रुल उमराने यह बात बादशाहसे कही। बादशाहने दण्ड देनेका हुक्म दिया। जब अमौललउमरा गया तो पीछेसे बादशाहने शैख फरीदको मी भेजा।

दो राजपूतोंने अमीरुलउमराका सामना किया। एकके पास तो तलवार थी और दूसरेके पास जमधर । जमघरवालेसे अमी- लउमराका एक नौकर जिसका नाम कुतुब था लड़ा और मारा गया। इधर यह जमधरवाला मी काम आया और तलवारवाले को अमीरलउमराके एक पठानने मार डाला। फिर दिलावर अभयरामके ऊपर गया जो दो राजपूतोंसे संजा खड़ा था और उन की तलवारोंसे घायल होकर वहीं खेत रहा। पीछे कुछ अहदियों और अमोल्लउमराके नौकरीने मिलकर उनको मार डाला। एक राजपूत तलवार निकालकर शैख फरीदके ऊपर दौड़ा। पर शैख के एक हबशी गुलामने उसको भी ठिकाने लगाया।

यह मारामारी आमखास दौलतखाने में हुई और इस दण्ड से बहुतसे बण्ड डर गये। अबुलनंबो उजबकने बादशाहसे निवेदन किया कि जो ऐसा अपराध उजबकोंमें होता तो अपराधियोंका सपरिवार संहार कर देता।

बादशाहने फरमाया कि यह लोग मेरे बीपक बढ़ाये हुए हैं मैं भी वही बरताव बरतता हूं। और फिर यह न्यायकी बात भी नहीं है कि एक मनुष्य के अपराधमें बहुतसे लोगोंको दण्ड दिया जावे।

मनसबोंका बढ़ाना।

बादशाहने ताजखां और पखताबेग काबुलीका मनसब बढ़ाकर