"उनके विशाल राज्यमें जिसकी प्रत्येक सीमा समुद्रसे जामिली थी अनेक धर्म और पंथके लोग अपने अपने भिन्न भिन्न मतोंको लिये हुए सुखसे निर्भय बसते थे किसीको किसीसे कुछ बाधा न थी। जैसी कि दूसरी विलातयों में है कि शीया मुसलमानोंको ईरान और सुन्नियोंको रूम, हिन्दुस्थान और तूरानके सिवा जगह नहीं है। और यहां सुन्नी शीया एक मसजिदमें फरंगी और यहूदी एक गिरजामें नमाज पढ़ते थे।"
"सुलहकुल अर्थात् सबके साथ निबाहने वाले पंथ पर चलते थे हरेक दीन और धर्म्मके श्रेष्ठ पुरुषों से मिलते थे और जैसी जिस को समझ होती थी उसीके अनुसार उसका आदर सत्कार करते थे। उनकी रातें जागरनमें कटती थीं दिन और रातमें बहुतही कम सोते थे रात दिनका सोना एक पहरसे अधिक न था। रातोंके जागनेको गई हुई आयुका एक प्रतिकार समझते थे।"
"बीरताका यह हाल था कि मस्त और छुटे हुए हाथियों पर चढ़ जाते थे। खूनी हाथी जो अपनी हथनियोंको भी पास न आने देते थे यहांतक कि महावतों और हथनियों को मारकर निकल खड़े होते थे, उन पर राहकी किसी दीवार या पड़के ऊपरसे चढ़ जाते थे और उन्हें अपने वशमें कर लेते थे। यह बात कइबार देखी गई है।"
"१४ वर्षको अवस्थामें राज्यसिंहासन पर विराजमान हुए थे हेमू "काफिर" जिप्सने पठानोंको गद्दी पर बिठाया था हुमायूँ बाद- शाहका देहान्त होने पर एक अपूर्व सेना और बहुतसे ऐसे हाथी सजाकर जैसे उस समय हिन्दुस्थानके किसी हाकिमके पास न थे दिल्ली पर चढ़ आया। आप उस समय पञ्जाबके पहाड़ोंकी तलहटीमें पठानोंको घेरे हुए थे। वहां यह समाचार पहुंचा तो बैरम- खांने जो आपका शिक्षक था साथके सब सेनानियों को बुलाकर आप को परगने कलानूर जिले लाहौरमें तखत पर-बिठाया। तरुद्दीखां आदि मुगल जो दिल्ली में थे हेमूमे लड़े और हारकर आपके पास