अनुवादकर्ताका परिचय।
इस पुस्तकके अनुवादकर्ता श्रीयुक्त मुंशी देवीप्रसाद महोदयका कुछ परिचय पाठकोंको देना चाहता हूं। आप हिन्दीभाषा और देवनागरीके प्रचारक बड़े पक्षपाती है। यद्यपि आप फारसी और उर्दूदी विद्वान हैं तथापि हिन्दौके तरफदार बहुत दिनसे हैं। बहुत दिन पहले हिन्दीमें राजस्थानका खप्न नामको पुस्तक लिखकर आपने अपने हिन्दौप्रेमका परिचय दिया था और राजस्थानको रियासतों में देवनागरी अक्षरोंके प्रचार के लिये जोर दिया था। मुसलमान बादशाहों और हिन्दू राजाओंका इतिहास जानने में आप अद्वितीय पुरुष हैं। राजस्थानको एक एक रियामतहीकी नहीं एक एक गांव और एक एक कसबेकी सब प्रकारको बातोंको आपने इम सरह खोज खोजकर निकाला है कि आपको यदि राजस्थानका सगौव इतिहास कहें तो कुछ भी अत्युक्ति नहीं होती। राजस्थान के इतिहासको खोजमें आपने जैसा श्रम किया है उससे आपका नाम सुवरिखे राजपूताना पड़ गया है। पर सच पूछिये तो वह राजस्थान के केवल इतिहास लेखकही नहीं वरच वहांके रोफार्मर या सुधारक भी हैं। बहुतसे देशो रजवाड़ोंमें उनकी लेखनौसे बहुत कुछ सुधार हुआ है। हिन्दीके प्रेमियों के लिये यह एक बड़े हर्षका विषय है कि इस प्रवीणावस्थामें वह हिन्दौके मुरब्बी हुए हैं और हिन्दीभाषाके इतिहासभाण्डारको पूर्ण करनेको और उनका ध्यान हुआ है।
मुंशी देवीप्रसादजी गौड़ कायस्थ हैं। आपके पूर्वपुरुष दिल्लौसे भूपाल गये थे। उनमेंसे एक मुंशी नरसिंहदास थे। उनके पुत्र मुंशी आलमचन्द थे उनके बेटे घासीराम मुंशी देवीप्रसादके परदादा