पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/७८

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दूसरा वर्ष । सन् १०१५। बैशाख सुदी ३ मंगलवार संवत् १६६३ मे बैशाख सुदी १ शुक्रवार संवत् १६६४ तक। खुसरोका पकड़ा आना। ३ मुहर्रम (०१५ (बैशाख सुदौ ५) गुरुवारको चङ्गेजखांकी रीति और तोरके अनुसार बादशाहके बाएं ओरसे खुसरीको दरबार में लाये। उसके हाथ बंधे थे पांवमें बेड़ी पड़ी थी। हुसैनबेगको उसके दाएं और अबदुलरहीमको बाएं हाथ पर खड़ा किया। खुसरो इन दोनोंके बीच में खड़ा हुआ कांपता और रोतो था। हुसैनबेग इस अभिप्रायसे कि कुछ सहारा लगे जल जलूल बकने लगा। बादशाहने उसका मनोरथ जानकर उसका बोलना बन्द किया। पौछ खुसरोको कारागारमें भेजकर उन दोनों दुराचारियों के लिये यह हुक्म दिया कि उनको गाय और गधेका चमड़ा पहिना कर गधेके ऊपर उलटा बिठावें और शहरके आसपास फिरावें। हुसैनबेग अन्तमें ४ पहर जीता रहकर सांस घुटजानेसे मर गया क्योंकि वह गायके चमड़ेमें था और यह जल्द सूखता है। अबदु. रहीम(१) गधेके चमड़ेमें था जो देरसे सूखता है फिर ऊपरसे भी उसको गोला किया जाता था इसलिये वह जीता रहा। इनाम और दशाए । बादशाह शुभघड़ी शुभमुहर्त न होनेसे 2 मुहर्रम (बैशाख सुदी १०) तक शहरमें नहीं गया। शैख फरीदको सुरतिजाखांकी पदवी और कसवे भेरवा मिला जहां खड़ाई हुई थी। दण्ड देनेके वास्ते (१) अबदुर्रहोमका नाम तुजुक जहांगीरी, फिर भी कई जगह आया है। बादशाहने पहचानके वास्ते उसको बदुर्रहोम गधा लिखा है।