पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/४०

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जातिप्रथा उन्मूलन / 41 इसका अर्थ है, समाज में व्याप्त वह स्थिति, जिसमें कुछ लोगों को विवश होकर अन्य लोगों से उन प्रयोजनों को भी स्वीकार करना होता है, जिसके अनुसार उन्हें आचरण करना है। यह स्थिति तब भी रह सकती है, जब कानूनी अर्थ में दासता का अस्तित्व न हो । यह स्थिति जातिप्रथा की तरह ऐसी दशाओं में पाई जाती है, जहां कुछ व्यक्ति अपनी पसंद का धंधा छोड़कर स्वयं पर थोपे गए अन्य धंधे करने पर विवश हो जाते हैं। क्या समानता पर कोई आपत्ति हो सकती है? फ्रांस की क्रांति के नारे का यह सबसे विवादास्पद अंश रहा है। समानता के विरूद्ध आपत्तियां ठीक हो सकती हैं और यही मानना होगा कि सभी लोग एक समान नहीं होते। लेकिन उससे क्या होता है। समानता भले ही काल्पनिक वस्तु हो । किंतु फिर भी उसे निर्देशक सिद्धांत के रूप में स्वीकार करना ही होगा। मनुष्य की शक्ति तीन बातों पर निर्भर है (1) शारीरिक आनुवंशिकता (2) सामाजिक विरासत या दाय, जो उसे माता- पिता द्वारा देखभाल, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान का संचय और उसे बर्बर की अपेक्षा अधिक सक्षम मनुष्य बनाने वाले सभी साधन के रूप में प्राप्त होते हैं, और (3) उसकी अपनी कोशिशें । इन तीनों पहलुओं की दृष्टि से नि:संदेह मनुष्य असमान है। किंतु प्रश्न यह है कि क्या उनके असमान होने के कारण हम भी उन्हें असमान मानकर व्यवहार करें। इस प्रश्न का जवाब समानता के विरोधियों को अवश्य देना होगा। जहां तक व्यक्तिवादियों का दृष्टिकोण है, लोगों को इसलिए असमान माना जाना चाहिए, क्योंकि उनके प्रयत्न भी असमान होते हैं। प्रत्येक मनुष्य की शक्ति के पूर्ण विकास के लिए उसे अधिक से अधिक प्रोत्साहन देना वांछनीय है । लेकिन अगर मनुष्य को उल्लिखित दो कारणों से असमान मानकर उसके साथ व्यवहार किया जाए तो उसका क्या परिणाम होगा? स्पष्ट है कि जो व्यक्ति जन्म, शिक्षा, परिवार का नाम, व्यावसायिक सम्बन्ध और विरासत में मिली सम्पति की दृष्टि से बेहतर है, वह अधिक अच्छा माना जाता है। किंतु ऐसी स्थितियों में जो चयन होगा, उसे योग्य व्यक्ति का चयन नहीं कहा जाएगा। चयन विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति का होगा। इसलिए यदि हम तीसरे कारण से लोगों को असमान मानने पर बाध्य होते हैं, तो यह भी उपयुक्त प्रतीत होता है कि पहले दो कारणों से हम लोगों को यथासम्भव एक समान समझें। दूसरी ओर, यह भी तर्क दिया जा सकता है कि यदि समाज के लिए अपने सदस्यों का अधिकतम सहयोग लेना अच्छा है, ऐसा तभी सम्भव हो सकता है जब कि प्रत्येक कार्य के आरम्भ में उन्हें यथासम्भव एक समान मानकर उनसे व्यवहार किया जाए। यह एक कारण है, जिसके फलस्वरूप हम एक समानता को अस्वीकार नहीं कर सकते। लेकिन समानता को स्वीकार करने का एक