पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/११७

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दिए थे। इस बात से पद्मावती की उस संचयबुद्धि का आभास मिलता है जो उत्तम गृहिणी में स्वाभाविक होती है।

अपनी व्यक्तिगत दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता का परिचय पद्मावती ने निकाले हुए राघवचेतन को दान द्वारा संतुष्ट करने के प्रयत्न में दिया है। राघव को निकालने का परिणाम उसे अच्छा नहीं दिखाई पड़ा--

'ज्ञान दिस्टि धनि अगम विचारा। भल न कीन्ह अस गुनी निकारा॥

बुद्धिमानी का दूसरा परिचय पद्मिनी ने राजा के बंदी होने पर गोरा बादल के पास जाने में दिया है। यद्यपि वे राजा से रूठे थे पर पद्मिनी ने उन्हीं को सच्चे हितैषी और सच्चे वीर पहचाना।

जातिगत स्वभाव उस स्त्रीसुलभ प्रेमगर्व और सपत्नी के प्रति उस ईर्ष्या में मिलता है जो नागमती के साथ विवाद का कारण है। नागमती के बगीचे में बड़ी चहल पहल है और राजा भी वहीं हैं, यह सुनते ही पद्मावती को इतना बुरा लगता है कि वह तुरंत वहाँ जा पहुँचती है और विवाद छेड़ती है। उस विवाद में वह राजा के प्रेम का गर्व भी प्रकट करती है। यह ईर्ष्या और प्रेमगर्व स्त्री जाति के सामान्य स्वभाव के अंतर्गत माना जाता है। इसी से इनके वर्णन में रसिकों को एक विशेष प्रकार का आनंद आया करता है। ये भाव व्यक्तिगत दुष्ट प्रकृति के अंतर्गत नहीं कहे जा सकते। पुरुषों ने अपनी जबरदस्ती से स्त्रियों के कुछ दुःखात्मक भावों को भी अपने विलास और मनोरंजन की सामग्री बना रखा है। जिस दिलचस्पी के साथ वे मेढ़ों की लड़ाई देखते हैं उसी दिलचस्पी के साथ अपनी कई स्त्रियों के परस्पर कलह को। नवोढ़ा का 'भय और कष्ट' भी नायिकाभेद के रसिकों के आनंद के प्रसंग हैं। इसी परिपाटी के अनुसार स्त्रियों की प्रेमसंबंधिनी ईर्ष्या का भी शृंगाररस में एक विशेष स्थान है। यदि स्त्रियाँ भी इसी प्रकार पुरुषों की प्रेमसंबंधिनी ईर्ष्या को अपने खेलवाड़ की चीज बनावें तो कैसा?

सबसे उज्वल रूप जिसमें हम पद्मिनी को देखते हैं वह सती का है। यह हिंदू नारी का चरम उत्कर्ष को पहुँचा हुआ रूप है। जायसी ने उसके सतीत्व की परीक्षा का भी आयोजन किया है। पर जैसा, पहले कहा जा चुका है, जायसी ने ऐसे लोकोत्तर दिव्य प्रेम की परीक्षा के लिये जो कसौटी तैयार की है, वह कदापि उसके महत्व के उपयुक्त नहीं है।

राजपूतों में 'जौहर' की प्रथा थी। पर पद्मावती और नागमती का सती होना 'जौहर' के रूप में नहीं आ सकता। जौहर तो उस समय होता था जब शत्रुओं से घिरे गढ़ के भीतर सैनिक गढ़रक्षा की आशा न देख शस्त्र लेकर बाहर निकल पड़ते थे और उनके पराजित होने या मारे जाने का समाचार गढ़ के भीतर पहुँचने पर स्त्रियाँ शत्रु के हाथ में पड़ने के पहले अग्नि में कूद पड़ती थीं। पर जायसी ने मुसलमान सेना के आने के पहले ही रत्नसेन की मृत्यु दिखाकर पद्मिनी और नागमती का विधिपूर्वक पति की चिता में बैठकर 'सती होना' दिखाया है। इसके उपरांत और सब क्षत्राणियों का 'जोहर' कहा गया है।