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सिंहलद्वीप वर्णन खंड

फूला कँवल रहा होइ राता। सहस सहस पखुरिन कर छाता॥
उलथहिं सीप, मोति उतरहीं। चूगहिं हंस औ केलि कराहीं॥
खनि पतार पानी तहँ काढ़ा। छीर समुद निकसा हुत बाढ़ा॥[१]

ऊपर पाल चहूँ दिसि अमृत फल सब रूख।
देखि रूप सरवर कै गै पियास औ भूख॥७॥

पानि भरै आवहिं पनिहारी। रूप सुरूप पदमिनी नारी॥
पद्मगंध तिन्ह अंग बसाहीं। भँवर लागि तिन्ह संग फिराहीं॥
लंकसिंघिनी, सारंगनैनी। हंसगामिनी कोकिलबैनी॥
आवहिं झुंड सो पाँतिहिं पाँती। गवन सोहाइ सु भाँतिहि भाँती॥
कनक कलस मुखचंद दिपाहीं। रहस केलि सन आवहिं जाहीं॥
जा सहुँ वै हेरैं चख नारी। बाँक नैन जनु हनहिं कटारी॥
केस मेघावर सिर ता पाई। चमकहिं दसन बीजु कै नाईं॥

माथे कनक गागरी थावह[२]
जेहि के असि पनहारी सो रानी केहि रूप॥८॥

ताल तलाब बरनि नहिं जाहीं। सूझै बार पार किछु नाहीं॥
फूले कुमुद सेत उजियारे। मानहुँ उए गगन महँ तारे॥
उतरहिं मेघ चढ़हिं लेइ पानी। चमकहिं मच्छ बीजु कै बानी॥
पौरहिं पंख सुसंगह संगा। सेत पीत राते बह रंगा॥
चकई चकवा केलि कराहीं। निसिस के बिछोह, दिनह मिलि जाहीं॥
कुररहिं सारस करहिं हुलासा। जीवन मरन सो एकहिं पासा॥
बोलहि सोन ढेक बगलेदी। रही अबोल मौन जल भेदी॥

नग अमोल तेहि तालहिं दिनहिं बरहिं जस दीप।
जो मरजीया होइ तहँ सो पावै वह सीप॥९॥

आस पास बहु अमृत बारी। फरी अपूर होइ रखवारी॥
नारँग नीबू सुरंग जंभीरा। औ बदाम बहु भेद अँजीरा॥
गलगल तुरँज सदाफर फरे। नारँग अति राते रस भरे॥
किसमिस सेव फरे नौ पाता। दारिउँ दाख देखि मन राता॥
लागि सुहाई हरफार्‌योरी। उनै रही केरा कै घौरी॥


ब्रह्मचार = ब्रह्मचर्य। सुरसती = सरस्वती (दसनामियों में)। खेंवरा = सेवड़ों का एक भेद। (७) भईं = घूमी हैं॥ गरेरी = चक्करदार। पाल = ऊँचा बाँध या किनारा, भीटा। (८) मेघावर = बादल की घटा। ता पाई = पैर तक। बीजु = बिजली।

  1. कुछ प्रतियों में इस चौपाई के स्थान पर यह है—कतक पंखि पौंरहिं अति लोने। जानहु चित्र लिखे सब सोने।
  2. पाठांतर—मानहु मैन मूरती अछरी बरन अनूप।

(९) बानी = वर्ण, रंग, चमक। सोन, ढेक, बगलेदी = ताल की चिड़ियाँ।