प्रारम्भिक सूचना। विश्वकोश ( Encyclopaedia ) भारतवर्ष में एक नई चीज़ है। इस देशमं शब्दार्थ सूचक अनेक कोश या अभिधान हैं परन्तु विविध-विषय-वर्णनात्मक कोश की प्रस्तुत नहीं किये गये। ये किसी एक व्यक्ति द्वाप बन भी नहीं सकते, क्योंकि इनमें प्र येक प्रकारक दर्शन, विज्ञान, विद्या और कलाओंको व्याख्या ओर मर्मज्ञता-पूर्ण विवेचन रहता है। कौन ऐसा पुरुष है जो समान भावसे रसायन, पदार्थविज्ञान, ज्योतिष, गणित, वैद्यक, धर्मशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मानव-विज्ञान, बनस्पति विज्ञान, प्राणि-विज्ञान, भूगर्भ-विज्ञान, भावातत्व, पुरातत्व, इतिहास, भूगोल, दर्शन, काव्य, गायन, नृत्य, स्थापत्य, कृषि, विविध उद्यमू, राजनीति, शासनविधि इत्यादि सैकड़ी, नहीं सहस्रो, विषयोंका मर्म जानने का दावा कर सकता हो ? विषयसमूहको जाने दोजिये वर्तमान कालमें एक ही विषयके किसी विशेष अङ्गके अध्ययन करनेमें मनुष्यकी श्रायुष्य बीत जाती है, तल किस प्रकार ऊपर लिखे अनुसार ज्ञान का संग्रह किया जा सकता है ? यह कार्य केवल सहयोग द्वारा साध्य है। प्राचीन कालमें सहयोग द्वारा रचनाके उदाहरण दिखाई नहीं पड़ते। कदाचित् उस समय ऐसे संग्रहाँकी वडी श्रावश्यकता न थी, परन्तु आधुनिक युगमै ज्ञानका भण्डार इतना बढ़ गया है कि शान-वर्धक संग्रहोंके बिना काम नहीं चल सकता। ब्रिटिशराजमें विश्वकोशका जन्म उस वर्ष हुआ था जब विश्व-विजयी सम्बाद नेपोलियनका बड़ा भाई पैदा हुआ था । कालको गतिसे विश्वविजयी का वंश तो अस्त हो गया परन्तु विश्वकोशका परिवार बढ़ता ही जाता है और बार २ जन्म लेकर मानो भारतीय पुनर्जन्मके सिद्धान्तकी पुष्टि करता हुश्रा अपनी उपयोगिताका सारी पृथ्वीपर डंका बजाता चला जाता है । प्रथम आविष्कारकी तिथिसे आजतक कोई १६६ वर्ष व्यतीत हो चुके, तबसे उसके अंग्रेजी वेष में चौदह अवतार हो चुके । वर्तमान शताब्दीके श्रारंभमें जब उसके विलायतमें दशावतार पूर्ण हो चुके थे तब कहीं उसके भारतीयरूपमें प्रकट होने की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर हुई. जिसके फलस्वरूप बंगालो भाषा में "विश्वकोश" नाम ही का संग्रह प्रस्तुत हुआ । भारतवर्ष में इस श्रेणीका यही पहला ग्रन्थ था जो २७ वर्ष के अकथ परिश्रमसे अनेक धुरंधर विद्वानों के सहयोग द्वारा पूर्णता को प्राप्त हुआ । उसी समय उसके प्रकाशको को सूझ पड़ा कि "जिस हिन्दी भाषाका प्रचार और विस्तार भारत में उत्तरोत्तर वहता जाता है और जिसे राष्ट्र भाषा बनानेका उद्योग हो रहा है उसी भारतको भावी राष्ट्र भाषामें ऐसे अन्थका न होना बड़े दुःख और लज्जाका विषय है। इसलिये उन्होंने प्रशंनीय धैर्यका अवलम्बन कर हिन्दो विश्वकोशकी नीव तुरन्त डाल दी और उसे पूरा करके छोड़ा । इस संग्रहमें विश्वकोश की शैली कुछ बदल दी है जिससे वह विश्वकोश और अभिधानका मिश्रण बन गया है । जिस समय यह कार्य चल रहा था उसी समय डाक्टर श्रीधर व्यंकटेश केतकर एम. ए. पो. एच, डी. ने एक विश्वकोश मराठी भाषामें रचने का सिलसिला डाला और प्रायः ४० लेखकोको सहायतासे वारह वर्षमें पूरा कर दिया। तत्पश्चात् उनका इसी ज्ञानसंग्रह को मराठीको पड़ोसिन गुजराती आवरणमै भूषित करनेका उत्साह बढ़ा और कार्यारम्भ भी कर दिया गया, परन्तु साथ ही उनके हृदय में वही प्रेरणा उत्पन्न हुई जो बंगाली प्रकाशकों के मनमें बंगाली विश्वकोशके पूरा करने पर उठी थी। इसलिये उन्होंने तुरन्त ही शुद्ध हिन्दी विश्वकोशके रचनाका प्रस्ताव किया जो स्वीकृत सामयिकशैलीके अनुसार हो और जिसके विषय सर्वव्यापी राष्ट्रभाषाके योग्य हो। अद्यपर्यन्त जो नवीन आविष्कार हुए हैं उन सबका समावेश रहे और मराठी गुजराती और बंगाली लेखकों द्वारा जो भारतवर्ष-विषयक सामग्रो छान बीनके साथ इकट्ठी की गई है उन सबका सार हिन्दीकोशमें सन्निविष्ट हो जावे प्रान्तिक भाषाके कोशोंमें ठेट हिन्दी या हिन्दुस्तानी विषयों का स्वभावतः अभाव है इसकी
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