पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। अग्रोहा ज्ञानकोश (अ)७२ अघारिया व्यापार यहाँ होता है और उसीका कपड़ा तय्यार | भी नीचे दिया जाता है-पानी में खड़े होकर तीन किया जाता है। इसका मुख्य गाँव ओधी है। बार इसको पढ़नेसे गुरू, पति, जननी, भगिनी, इसमें हज़ाराकी फौजका एक भाग रहता स्नुपा इत्यादिसे गमन करनेके समान भी धाप अग्रोहा-पञ्जाबके जिला हिसारकी तहसील | नष्ट हो जाते हैं। फतेहाबाद में एक स्थान है। प्राचीन काल में इस | अधारिया--श्रागरसे निकलकर यह जाति गाँवका महत्व अवश्य था किन्तु अब तो यहाँ | अव सम्पूर्ण भारतवर्षमें पाई जाती है। सम्पूर्ण कुछ भी नहीं है। उ० अ० २९२० और पू० दे० भारतमें ५५४११ से अधिक अघारिया हैं। उनमें ७५'३८ 1 यह हिसारसे १३ मील पर वायव्य | से आधे तो केवल बरार और मध्य प्रान्तमें ही दिशामें बसा हुआ है। ऐसी किंबदन्ती है कि हैं। बिहार और उड़िसा भी यह काफी पाये अग्रवाल बनियोंकी उत्पत्ति यहाँ ही से हुई है । जाते हैं। सम्बलपुर, रायगढ़, सारंगगढ़, और इसीसे इसका बहुत कुछ महत्व भी है। विलासपुर, छोटा नागपुरमै इनकी यस्ती विशेष पुराने किले और इमारतोंके खण्डहर इसके पूर्व- है। इनकी ऐतिहासिक कथासे यह विदित कालीन महत्वके साक्षी हैं। ११६४ ई. में जव | होता है कि पहले ये शागर के समीप रहनेवाले मुहम्मद गोरीने इस नगरको जीत लिया तो गजपूतोके वंशज हैं। इन्होंने देहली के बादशाह 'अग्रवाल' जाति इधर उधर फैल गई। इसकी | के सामने कभी सिर न झुकाया-एक ही हाथसे जनसंख्या लगभग १३०० है। सलाम करते थे। देहलीके बादशाहने एक षड़यन्त्र अघमर्षण-(१) मधुच्छन्दके कुलोत्पन्न एक ऋषि रचकर सबको वध करनेका प्रश्न किया। सब (२) इसी नामके एक और ऋषि हो | तो मारे गये. किन्तु एक कुशल नामे निकल भागा गये हैं। और अपने बदले एक चमारको भेज दिया। श्राज (३) विन्ध्यापर्वतके पास इसी नाम तक भी पित्रोंको तर्पण करते समय उसको ये लोग का एक तीर्थ है। यहाँ पर प्राचेतसदक्षने बहुत जल देते हैं। एक ऐसी भी कथा है कि सेनामै समय पर्यन्त तप किया था। इसी जाति के तीन भाई गजपति राजाके दरबारमें (४) 'सन्ध्या' की एक विधि । इस शब्द भरती होनेके लिये गये। गजाने तीन म्याने का अर्थ 'पापक्षाल' है। ऋग्वेदके दसवे मण्डल उनके सामने रख दी और उनमेसे एक पक उठाने के १६० सूक्त को यह नाम दिया गया है वह नीचे । को कहा और जो कोई जो म्यान उठावेगा उसीके दिया जाता है:- अन्दरकी वस्तुसे उसका कार्य निर्धारित किया ऋतं च सत्यं चाभीद्धातपसोध्यजायत । जावेगा। एकने सोनेकी मूट वालीम्यान उटाई किन्तु ततो राज्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः ॥१॥ उसके अन्दर बैल हाँकनेकी चाबुक निकली, अतः समुद्रादर्णवा दधिसंवत्सरो अजायत । उसके लिये खेतीवारीका कार्य निश्चित किया अहोरात्राणि विदधद्विश्वरय मिषतोवशी ॥२॥ गया। उसके वंशज होने से ये लोग खेती करने लगे, सूर्याचंद्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत् । किन्तु यथार्थमे ये नो अपनेको सोमवंशी राजपूत दिवं च पृथिवीं चांतरिक्ष मथोखः ॥३॥ कहते हैं। कुछ लोगोंका पेसा भी अनुमान है इस अधमर्पण सूक्तम पद पाठ न होना भी कि ये लोग आर्य जातिके हैं क्योंकि इनकी एक विशेषता है। इस सूक्तके पाठके अनन्तर श्राकृति उन्हींके सदृश है। (Russel & Hira जल हाथ में लेकर उसमें श्वास परित्याग करते | Lat's Trihe and easte of Central India.) और उसे पृथ्वी पर गिरा देते हैं। इसका इनमें उच्च और नीच दो श्रेणियाँ होती है। नीच अभिप्राय यह है कि शरीर में जो पाप पुरुष का श्रेणीवालोंके पिता तो श्रघारिया होते हैं किन्तु घास है उसे श्वास क्रिया से हाथ के जलमें बाहर माता बहुधा श्रहीग्नि होती हैं। इनके ८४गोत्र होते कर अपने बाये ओर की भूमि में पटक कर उस है। इनमें साट गोत्र वाले तो पटेल कहलाते हैं पाप-पुरुषका नाश कर डालते हैं। १८ गोत्र ऐसे हैं जो नायक कहलाते हैं और ६ यथाश्वमेधः कृतुराट् सर्वपापा पनोदनः । गोत्रो को चौधरी की पदवी है। तथाघमर्षणं सूक्तं सर्वपाप प्रणाशनम् ॥ इनके गोत्र कुछ तो ब्राह्मणोंके गोत्रोसे मिलते ऊपर लिखे हुए श्लोकसे इस सूक्तका प्रभाव जुलते हैं, कुछ राजपून वंशोके समान हैं और तथा महत्व ज्ञात हो जावेगा। स्नानके समय गोत्र ऐसे हैं जिनका कोई अर्थ ही नहीं है। कुलमें भी यह सूक्त पढ़ा जाता है। उस समयका फल | बहुधा ५, ६ साल पर कई विवाह एक साथ ही