पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१०८

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मैंन सोचा, क्या पहू | जीनत की तरफ देखा तो वह भेंप गई । मैंने ऐसे ही कह दिया 'वडा नक खयाल है।' बाबू गोपीनाथ खुश हो गया। 'मण्टा माब, है भी वडी नेक । खुदा की क्सम न जेवर का शौक है, न क्सिी और चीज का । मैंन कई बार कहा जान मन, मकान बनवा दू जवाब क्या दिया, मालूम है आपको?-क्या क्रूगी मकान लेकर, मेरा और कौन है ? मण्टो साह्य मोटर कितन म पा जाएगी ?' मैंन कहा मुझ मालूम नही । वाचू गोपीनाथ न माश्चय स कहा क्या बात करते हैं मण्टो साहब 1 अापका और कागेकी वीमन मालूम न हो | क्त नलिए मरे साथ, जेनो के लिए एक मोटर लेंग। मैंन अव देखा है कि वम्बई में मोटर हानी ही चाहिए।' जीनत के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। वाचू गोपीनाथ का नशा थाडी देर के बाद बहुत तज हो गया । वहुत ज्यादा जज्बातो होकर उसन मुझम कहा, 'मण्टो साहब, पाप वडे लायक आदमी हैं । मैं तो बिल्कुल गधा हूँ। आप मुझे बताइए, मैं आपकी क्या 'खिदमत कर सकता हू ? क्ल बातो-बातो म सण्डो ने आपका जिक्र 'क्यिा । मैं उसी वक्त टैक्सी मगवाई और उसस कहा मुझे ल चलो मण्टो माहब के पाम । मुझस काई गुस्ताखी हो गई हो तो माफ कर दीजि- एगा। बहुत गुनहगार ग्रामी हूँ । ह्विस्की मगवाऊ अापके लिए और ?' मैंने कहा नहीं-नहा, वहुत पी चुके हैं।' वह और ज्यादा जज्वाती हो गया और पीजिए मण्टो साब। यह कहकर जेब से सौ मौ के नाटा का पुलि दा निकाला और एक और नोट अलग करन लगा लेकिन मैंने सब नोट उसके हाथ स ले लिए और वापस उसकी जेब म ठूम दिए । 'सौ रपये का एक नोट प्रापन गुलाम अली को दिया था, उसका क्या हुआ ?' मुझे दरअसल कुछ हमदर्दी मी हो गई थी वायू गोपीनाथ म ! कितने आदमी उस गरीव के साथ जोक की तरह चिमटे हुए थे । मेरा मयाल था 'कि बाबू गोपीनाथ वितुन गया है लेकिन वह मेरा इशारा समझ गया और मुस्कराकर कह्न लगा, 'मण्टो माहब उस नोट में जो कुछ बाकी बचा, वह या ता गुलाम अली की जब मे से गिर पड़ेगा, या वावू गोपीनाथ | 109