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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/११०

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को धोखा देना चाहता है, उसके लिए इनस अच्छी जगह और क्या हो सकती है? मैंन एक और सवाल किया 'पापको तवायफा का गाना सुनने का शोर है। क्या आप सगीत को समभ रसत है उमन जवाब दिया, 'वित्तुल नही और यह अच्छा ही है क्याकि मैं कनमुरी म क्नसुरो तवायफ वे यहा जाकर भी अपना सर हिला मकना है । मण्टो साहब, मुझे गान में कोई दिलचस्पी नही, लेकिन जेव में स दस या सौ रूपय का नाट निकालकर गान वाली को दिग्पाने में बहुत मजा प्राता है। नाट निकाला और उमको दिखाया वह उसे लेने के लिए एक अदा म उठी, पाय पाई तो नार जुराव म उडस लिया । उसने झुककर उस वाहर निमाता ता हम गुश हो गए । ऐनी बहुत सी फिजूत फिजूल- सी बातें हैं जो हम एसे तमाशबीना को पसद हैं, वरना कौन नहीं जानता कि रण्डी काठे पर मा बाप अपनी प्रीताद से पता कराते है और मक- वरा तथा सक्यिा म आदमी अपने खुदा से । वायू गापीनाथ का शजरा या वगावली तो मैं नहीं जानता, लकिन इतना मालूम हुग्रा कि वह एक बहुत बडे काम वनिय का वेटा है। वाप के मरन पर उम दम लाख रपय की जायदाद मिली जो उसन अपनो इच्छानुमार उडाना शुरू कर दी। वम्बई प्रात वक्त वह अपन साय पचास हजार पय लाया था। उस जमान म सब चीजें मस्ती थी, लकिन फिर भी हर राज मो सवा मौ रपय खच हा जात थे। जेनो के लिए उसन फिएट बार परीदो । याद नहीं रहा, लेकिन शायद तीन हजार में पाई थी ! एज टाइवर रखा, लेकिन वह भी लफगे टाइप का । बाबू गापीनाथ को कुछ एन ही ग्रामो पस द य । हमारी मुनाकाता का सिलसिला बढ गया। बाबू गानीनाय स मुझ तो सिफ दिलचस्पी थी लेकिन उमे मुझमे श्रद्धा सी हो गई थी। यही कारण था कि दूसरा के मुकारले म वह मेरा बहुत ज्यादा प्रादर करता था । पर राज शाम करीब जब म फ्लट पर गया तो मुझ वहा शपीक का देवार वटी हैरानी हुई । अगर मैं मुहम्मद शफीक तूसी कहू तो लोग समझ लेंगे कि मेरा मतलव क्सि आदमी से है । या तो शफीक काफी वावू गोपीनाथ ) 111