मम्मी उमका नाम मिसेज स्टेला जैक्सन था, मगर सब उस मम्मी कहते थे। दमियान क्६ की अधेड उम्रकी स्त्री थी। उसका पति जैवसन प्रथम महायुद्ध म मारा गया था। उसकी पेंशन स्टला या लगभग दस वप स मिल रही थी। वह पूना में क्स पाई, क्ब स वहा थी, इसके बारे मे मुझे कुछ मालूम नहीं। दरअसल मैन उसके बारे म कुछ जानने की कभी कोशिश ही नहीं की। वह इतनी दिलचस्प स्त्री थी कि उससे मिलकर सिवाय उसके व्यक्तित्व के और किसी चीज स दिलचस्पी नहीं रहती थी। उमस कौन सर्वा घत है, यह जानन की आवश्यक्ता ही मत्स्म न हाती थी, क्योकि वह पूना के जर-जरेस परिचित थी। हो साता है कि यह एक हद तर अतिशयोक्ति हो, लेकिन मेर लिए पूना वही पूना है । उसके वही जर, उसके तमाम जरें हैं, जिावे साथ मेरी कुछ यादें जुडी हुई हैं और मागी का विचित्र व्यक्तित्व उनमे स हर एक म विद्यमान है। उमसे मेरी पहली मुलाकात पूना म ही हुई मैं बहुत ही सुम्त विम्म का आदमी हू । यो धुमक्कडी वी वडी बडी उमर्गे मेरे दिल म मौजूद हैं और अगर आप मेरी बातें सुनें तो आपको लगगा कि मैं पचनजया या हिमालय की इसी तरह की विसी अय चोटी को सर करने के लिए निकल जाने वाला हूँ। ऐसा हा मक्ता है, लकिन इससे भी अधिक सभा- बना इम वाल की है कि वह चाटी सर करके मैं वही का हो रह । सुदा जाने किनन बरसा से बम्बई में था। आप इसमे अदाजा लगा सवत हैं कि जब मैं पूना गया तो वीवी मेरे साथ थी। एक लटका होवर उममा मरे करीब करीब चार वरस हो गए थे। इस बीच मैं ठरिए, मैं हिमाव लगा लू अाप यह समझ लीजिए पिपाठ वरम स वम्बई में था, लेकिन उस बीच मे मुझे वहा का विक्टोरिया गाडन और म्यूजियम देखन की भी फुरसत नहीं मिली थी। यह तो केवल सयोग की बात थी कि मैं एक- 131
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