पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२०२

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उमरे ठण्डे लोहे पर अपन गात रपट प्रापने गम-गम गा7-~-और उसकी सारी सर्दी चूम ? थोड़ी देर के लिए उस ऐया लगा पिगम वे अचेलम्प लोहे के सम्भे, फुटपाथ के चौकोर पत्थर और हर वह चीज, जा IT के सनाटे मे उससे ग्रामपाम थी, हमदर्दी की नजरा स उस दख रही है और उसके कपर मुका हुआ पाया भी, जो मटियाल रग की एमी माटी चादर मालूम होना था, जिसमें अनगिनत छेद हो रहे हा, उसकी गाने ममझना था और मुग को को भी ऐसा लगता था कि वह तारा का टिमटिमाना समझती है--क्नि उसके अदर यह क्या गडवड थी? अरर उम मौसम की फिजा महमूम कर रही थी, जो वारिश म पहले देखने मे पाया करती है ?--उसका जी चाहता था कि उसके जिस्म का एक-एक नौम रव पुल जाए और जो युट उमके प्रदर उबल रहा है, "जन गस्ते बाहर निकल जाए। पर यह कैसे हो कम हो वह क्या अपने ? सुगधी गली के नुक्कड पर यत डालने वाले नाल वम्ये के पास पदी थी। ह्या के तेज मोके मे बम्बे की लोहे की जीम जो उसके खुले हुए मुह मे लटकी रहती थी पखडाई तो सुगधी की निगाह एकदम उम और उठो, जिधर मोटर गई थी, पर उस कुछ दिमाईन दिया। उसके प्रदर कितनी जबरदस्त इच्छा थी कि वह सठ माटर पर एक बार फिर पाए और और नपाए बला से मैं अपनी जान क्या वेशार हलकान रू । घर चलते है और आराम म लम्बी तानकर सोत हैं। इन झगडा में रया ही श्या है ' मुफ्त की मिल्दी ही तो है चल सुगधी, घर चल ठण्डे पानी का एक डोंगा पी और थोडा सा वाम मलवर सो जा फस्ट बनाम नीद आएगी और सब ठीक हो जाएगा सह और उस मोटर की ऐमी की तसी यह सोचते हुए सुगधी का बोझ हलका हो गया, जैम वह किमी ठण्डे शालाब से नहा धोकर बाहर निक्ली हो। जिस तरह पूजा करन के बाद उसका शरीर हाना हो जाता था, उसी तरह अब भी हलका हो गया था। 7 हतर। 199