पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/३१

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ड्राइवर ने घूमकर खुशिया की ओर देसा और कहा, 'सेठ, इजन तो यद है।' जव सुशिया को अपनी गलती का अहसास हुअा ता-उमरी वेचनी और भी बढ गई और उसन कुछ कहन की बजाय होठ चवान शुरू कर दिए । पिर एकाएकी सिर पर विश्तीनुमा कानी टोपी पहनकर, जो अब तक उसकी वगल म दबी हुई थी, उसने ड्राइवर का धा हिलाया और कहा दसो, अभी छोकरी पाएगी। जैस ही अदर पाए तुम माटर चता दना समझे ? घबरान को कोई बात नहीं है, मामला ऐसा वसा नहीं । इतने में सामन लक्डी वाले मकान से दो आदमी बाहर निकले। आगे आगे खुशिया का दोस्त था और उसके पीछे पीछे काता, जिसन शोख रग की साडी पहा रखी थी। खुशिया झट से उस तरफ को सरक गया, जिधर अधेरा था। खुशिया के दोस्त ने टैक्सी का दरवाजा खोला और काता को अदर दाखिल करके दरवाजा बद कर दिया। उसी समय काता की हरत- भरी आवाज सुनायी दी जो चीख से मिलती जुलती थी, 'खुशिया, तुम ?" हा मैं लेमिन तुम्ह रुपये मिल गए है न ?' खुशिया की मोटी आवाज बुराद हुई, 'देखो ड्राइवर जुहू ले चलो।' ड्राइवर ने सल्फ दबाया । इजन फडफडाने लगा। वह बात ) काता ने कही, सुनाई न द सकी। टैक्सी एक धचके के साथ प्राग बढी और खुशिया के दोस्त को सडक के वीच चक्ति विस्मित छोड उस नीम रोशन गली में गायब हो गई। इसके बाद फिर क्सिीन खुशिया को माटरो की दुकान के उस पत्थर के चबूतरे पर नही देखा। 30/ टोग किसिंह