पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/३७

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? इशर्रामह ने एक ही लपेट म अपने बालो का जूडा वनात हुए उतर दिपा, 'नहीं।' कुलवन पोर चिढ गई, 'नहीं, तुम जहर महर गए थ, और तुमने बहुत सा रपया लूटा है, जो मुझम छुपा रहे हो।' 'वह अपने बाप को तुसम न हो जो तुमस झूठ बोले ।' कुलवत कौर थोडी दर लिए मौन हो गई, फिर एकदम भडककर बोली, तेकिन मेरी समझ म नहीं आता, उस रात तुम्ह क्या हुमाया अच्छे भते मेर साथ लेट थ, मुझे तुमने वह सार गहने पहना रखे थ जो तुम शहर से लूटकर लाए थे, मरी भपिया ले रहे थे, पर न जान तुम्हें एषदम क्या हुआ, उठे और कपड़े पहनकर बाहर निकल गए।' ईशरसिंह का चहरा उतर गया। यह परिवतन देखते ही कुलवत पौर ने कहा, देखा कैसे रग पीला पड़ गया है-इशारसिंहा, क्सम वहि गुर की, जरूर दाल मे कुछ काला है ।' तेरी जान की कसम, कुठ भी नही ।' ईशरसिंह की आवाज बजान थी। कुलवत और का सदेह और भी दृढ़ हो गया। ऊपर का हाठ भीचकर उसने एक-एक दशध्द पर जोर दते हुए कहा, 'ईशरसिंहा क्या बात है ? तुम वह नही रहे जो प्राज स प्रार दिन पहले थे। ईशमिह एक्दम उठ बैठा जस किसीने उसपर हमला कर दिया हो। कुलबत कार को अपनी शक्तिशाली वाहा म समेटकर उसन पूरे भार से उमे मभोडना शुरु कर दिया, जानी, वही हूँ घुट घुट पा जाफिया, तेरी निक्ले हड्डा दी गर्मी फुलवत कौर ने कोई हस्तक्षेप न दिया लेकिन वह शिकायत परती रही, 'तुम्ह उम रात क्या हो गया था? बुरे को मा का वह हो गया था। बतायोग नहीं भोई बात हो तो बताऊ।' 'मुझे अपन हाथ स जतायी जो झूठ बोलो।' ईसिंह ने अपनी बाहें उसकी गदन के गिद्ध डाल दी और हाई 38/टोबा टप सिंह