पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/६५

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देख रहा था, एक गोरी चिटटी लड़की अपन नग शरीर को चादर में छुपाने का असफल प्रयास करत करते लगभग सा गयी थी । उसको तात रेशमी मलवार दूसर पलग पर पड़ी थी। जिसके गहर लाल रग दे नाड का एक फुदना नीच लटक रहा था । पलग पर उमजे दुसरे उतार हुए कपडे भी पड़े थे~सुनहरी फूला वाला जम्पर अगिया जांघिया और दुपट्टा सवका रंग लाल था गहरा नातार उन सबम हिना के इत्र की तेन खुशव बसी हुई थी। लडकी के काने वाला में मुकंग के का धूल की तरह जमे हुए थे। चेहरे पर पाठर, मुर्वा और मुकश के उन कणा न मिल जुलकर एक विचित्र रग पैदा कर दिया था बेजान सा उडा उडा रग और उसके गोर वक्ष स्थल पर कच्चे रग की अगिया ने जगह-जगह लाल लाल पब बना दिए थ। छातिया दूध की तरह सफेद थी। उनमे हल्का हल्का नीलापन भी था। बगलों के बाल मुड़े हुए थे, इस कारण वहा सुरमई गुबार मा पंदा हो गया था। रणधीर इस लडकी की और देखकर कई बार सोच चुका पा-क्या ऐसे नहीं लगता जैसे मैंन अभी अभी कीलें उसेडकर इसे लकदी से बद वक्स मे स निकाला हा~-पिताबा और चीनी के बतनो को तरह । क्योकि जिस प्रकार किनावा पर दबाव के चिह्न उभर मात हैं और चीनी के बतना पर हल्का हल्की खराश पड जाती हैं ठीक उसी तरह इस लडकी के गरीर पर भी मई निशान थे। जब रणधीर ने उसकी तग और चुस्त अगिया की डारिया खोली थी तो उसकी पीठ पर और सामन मीन पर नम नम गोश्त पर झुरिया-सी बनी हुई थी और कमर के चारा मोर पसार बाधे हुए नाडे का निशान भारी और नुकोल जडाऊ नकलम स उसके सीन पर कई जगह खराशे- सी पड गई थी जस नावनो म बडे जोर के साथ युगाया गया हो। वरमाा वे वही दिन थे। पीपल के नम नम कोमल पत्तो पर वर्षा की जूदें गिरले म बसी ही आवाज पंदा हा रही थी जैसी रणधीर उम दिन सारी रात सुनता रहा पा। मौसम बहुत ही सुहावना था। ठण्डी ठण्डी हवा चल 66/टोवा विगिह