पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/७

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लता वे कटघरों में घसीटे जाने पर भी वह बराबर उस वातावरण और उन पत्रों के संबंध में कहानियाँ लिखता रहा जिसे 'सभ्य' लोग धृणा की दृष्टि से देखते है और अपने समाज में कोई स्थान देने को तैयार नहीं। यह सही है कि जीवन के बारे में मटो की दृष्टिकोण कुछ अस्पष्ट और एक सीमा तक निराशावादी है। स्वस्थ पात्रों के बजाय उसने अधिकतर अस्वस्थ पत्रों को ही अपना विषय बनाया है और अपने युग का वह बहुत बड़ा cynic था। लेकिन मानव मनोविज्ञान को समझने के लिए और फिर उसके प्रकाश में बनावट और झूठ का पर्दाफास करने की जो क्षमता मन्टो को प्राप्त थी वह निःसंदेह किसी अन्य उर्दू लेखक को प्राप्त नहीं है।

जहाँ तक कलात्मक पौढ़ता का संबंध है। मेरे विचार में उर्दू के आधुनिक युग का कोई कहानी लेखक मंटो तक नही पहुँचता। हमें उसके सिद्धांत से मतभेद हो सकता है। हम यह कह सकते हैं कि कोई कला कृति उस समय तक महान नहीं हो सकती जब तब कि कलात्मक पौढ़ता के साथ-साथ उसमें रचनात्मक पहलू न हो। लेकिन उसकी लेखनी पर उंगली रखकर कभी यह नहीं कह सकते कि कला की दृष्टि से उसमें कोई झोल है या यह की लेखक अपने सिद्धांत और मान्यताओं के प्रति निष्कपट नहीं।

प्रकाश पंडित