पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १० )


में वैसा सामर्थ्य भी है। अतएव हम ठाकुर को सच्चा कवि और उनकी कविता को सची कविता कहने में कभी संकोच नहीं कर सकते।

२-ठाकुर ने स्वयं यह बात कही है कि कही हुई बात को शब्दों कोहेर फेर से फिर से दोहराना कविता नहीं है । तरन् सदैव अनूठी बात कहने का उद्योग करना ही कवि का काम है। प्रमाण लीजियेः-

सवैया

मोतिन कैली मनोहर माल गुहै तुक अच्छर जोरि बनावै । प्रेम को पंथ कथा हरि नाम की बात अनूठी बनाय सुनावै ॥ डाकुर सो कवि भावत मोहिं जो राज समामें बड़प्पन पावै। पंडित और प्रवीनन को जोइ चित्त हरै सो कवित्त कहावै।। जान पड़ता है कि ठाकुर ने अपने इसी सिद्धान्त पर स्थित रह कर अपने समकालीन अन्य कवियों की तरह कोई ग्रन्थ नायिका भेद या अलंकार का नहीं रचा वरन् वे सदा फुटकर ही.काव्य करते रहे।

  • ठाकुर की दूरदर्शिता और उनका देशकाल का ज्ञान *

है-जिस समय . बांदा वाले हिम्मत बहादुर गोसाई ने धोखा देकर महाराज पारीक्षत को बांदे बोलाया और महाराज पापेक्षत तैयार हो कर कुछ दूर निकल गए उस समय ठाकुर जैतपुर में मौजूद न थे। किसो अन्य ग्राग को गये थे, थोड़ी देर के अनन्तर ठाकुर को महाराज सारव के चले जाने की खबर मिली । वे अपनी दूरदर्शिता और देश काल के शान से तत्काल समझ गये कि महाराज जी वहां जाकर या तो मारे जायँगे या कैद होंगे (हिम्मत बहादुर ने अंगरेजों से यही वादा किया था)। बहुत काल से ठाकुर कषि महाराज पारी- क्षत का नमक खाते थे । मलैरन घोड़े पर सवार हो मारामार