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पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/२०

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वार म्यान में रख ली और मुसकुरा कर बोले "राजा साहब हिम्मत तो हमारे ऊपर सदैव से अनूप रूप से वलिहार होती रही है आज हमारी हिम्मत कैसे गिर जापगी"। इस .पद के व्यंगभरे शब्दों ने हिम्मत बहादुर के चित्त को फड़का 'दिया, उसने अपने कटु बचनों की क्षमा मांगी और बहुत सा पारितोषिक देकर ठाकुर को बिदा किया। (पाठकों को शात होना चाहिए कि यह हिम्मत बहादुर जाति के गोसाई थे असल नाम इनका 'अनूपगिरि' था राजा हिम्मत बहादुर शाही खिताब था)।

४-जिस समय ठाकुर कवि महाराज किशोरसिंह पत्रा नरेश के दरबार में गए उस समय राजश्री कुछ सानमुख थी, लोगों का रंग ढंग बदला हुआ था, दरबारियों में परस्पर बिरोध था, स्वार्थपरता की उन्नति हो रही थी। इन बातों को देख आपने जो कविता बनाई थी उसमें के दो एक सवैया ये हैं।

चाल नवा चरचान पाचातुरीवारस रीतिन प्रीति को ढौर है। सांच घटो बढ़ो झूठ जहान में लोभके लाने जहां तहां दौर है। ठाकुर वेई गोपाल वही हम वोही चवाव रहो इक ठौर है। मेरेई देखत मेरीभटू सिगरोग्रज है गयो और को और है।

वे परबीन विचच्छन लोग बने पै समै कछु भान भयो । चीखे सवाद जहां अति मीठे सो सीने स्वभाव नये नयेरी। ठाकुर कौन सो का कहिये अब ओ चित चाह वे वे समयेरी। वे दिन वे मुख वैसे उछाह सो वे सब वीर हेराय गयेरी॥

इन्ही महाराज किशोरसिंह की छोटीरानी जिन पर महा- राजाजी विशेष प्रेम करते थेइतनी अधिक लज्जावती थी कि एकान्त स्थल में भी महाराजा साहेब के सामने कभी चूंघट न