मेरे लगि जैहै तो दुहाई वृषभान जू की ऐसी लौद घालिहौं कि चौअर उपटहै ॥
रंग सो माचि रही रसफाग पुरी गलियां स्यौं गुलाब उलीच में ...जाय सके न इतै न उतै सो घिरे नर नारि सनेह रगीच में॥ ठोकुर ऐसो उमाह मचो भयो कौतुक एक सखीन के बीच में । रंग भरो रसमाती गुवालि गोपालहिं लै गिरी केसर कीच में।
गाईं पिक बैनी मृगनैनिहू बजावै बीन,
ना. चन्द्रमुखी चारु चौर की चटक
कीरति कुमारी वृषभान की दुलारी राधे,
अटकी बिलोकि लोक लाज की अटक पै
ठाकुर कहत चीर केसर के रङ्ग , रंगो,
अतर पगो सो मन मोहै पीत पट पै।
देख तो देखात कैसो राजत रसीली आज,
आली री बसंत बनमाली के मुकट पे।।
धम धम धौंसन की धुनि सुनि लाजै
फहरै निसान आसमान अंग छैठे हैं।
केहरी करिद हय हंस मूसा नादियाहू,
और सब बाहन उमाहन उमैठे हैं ।
ठाकुर कहत सुर असुर समूह नर,
नारिन के जूह नन्द मन्दिर में पैठे हैं।
आषो चलो लीजिये जू कीजिये जनम धन्य,
करुणा निधान कान्ह पान देन बैठे है।।
बिंद्रावन युगुल किसोर परना के धाम, स्याम अभिराम राधे ओर हग जोरे हैं। NI घन.