ठाकुर कहत कोऊ हरि-हरदास जे हैं,
तिनकों न व्या जे दुनी के खटपट हैं।
सटपट सारी देखी घट पट वारी चीज,
नटखट रावरे अजब अटपट हैं ॥ ५॥
छोटे को छोटो बड़े कोबड़ो औलटे को लटो उपजाय दयो है। शुद्ध को शुद्ध अशुद्ध अशुद्ध को आपुन सीख सिखाय दयो है । ठाकुर जालो लगो जगदातम आतम का बिसराय दयो है। देखिये वांको विचार अनूपम एक को एक लगाय दयो है ॥६॥
छिपिया १ को दूधभात खीचरीहू करमाकी,
चकरार रैदास जू चमार हू के खाये हैं।
बिदुर को भाजीरोटी बथुआसमां की रुची,
बीदुरैन ४ केर ५ छोल छिकुला खवाये हैं।
करिकै करार आय बौध अवतार ६ लेय,
आपनी पुरी में एक पातरी जिमाये हैं।
नीच परसंगी जात पाँति के न अंगी ऐसे,
ठाकुर दोरंगी तो सदा ते होत आये हैं ॥७॥
मेवा बई घनी काबुल में बिंदावन आनि करील जमाये । राधिका सी चुभ बाम बिहाय कै कूबरी संग समेह बढ़ाये । मेवा तजी दुरजोधन की बिदुराइन के घर छोकल खाधे । ठाकुर ठाकुर की का कहाँ सदा ठाकुर बावरे होनई आये ॥
१ दरजी, २खरा, ३ सावां, (अन्न) ४ विदुर की रूजी, ५ केला, ६ जगन्नाथ जी ७ यह शब्द हमने वदल दिया है यहांपर अति कटु शब्दु था ३