चौबेजी ने कहा।
अभी तक बंजो से किसी ने न पूछा था कि तू कौन है,कहां रहती है,या हम लोगों को कहां लिए जा रही है।
बंजो ने स्वयं ही कहा—पास ही झोपड़ी है। आप लोग वहीं तक चलिए; फिर जैसी इच्छा।
सब बंजो के साथ मैदान के उस छोर पर जलने वाले दीपक के सम्मुख चले, जहां से "बंजो! बंजो!” कहकर कोई पुकार रहा था। बंजो ने कहा—आती हूं!
झोपड़ी के दूसरे भाग के पास पहुंचकर बंजो क्षण-भर के लिए रुकी। चौबेजी को छप्पर के नीचे पड़ी हुई एक खाट पर बैठने का संकेत करके वह घूमी ही थी कि बुड्ढे ने कहा—बंजो! कहां है रे? अकाल की कहानी और अपनी कथा न सुनेगी? मुझे नींद आ रही हैं।
आ गई—कहती हुई बंजो भीतर चली गई। बगल के छप्पर के नीचे इन्द्रदेव और शैला खड़े रहे! चौबेजी खाट पर बैठे थे, किंतु कराहने की व्याकुलता दबाकर। एक लड़की के । आश्रय में आकर इन्द्रदेव भी चकित सोच रहे थे—कहीं यह बुड्ढा हम लोगों के यहां आने से चिढेगा तो नहीं।
सब चुपचाप थे। बुड्ढे ने कहा—कहां रही तू बंजो! एक आदमी को चोट लगी थी, उसी...। तो-तू क्या कर रही थी? वह चल नहीं सकता था, उसी को सहारा देकर
मरा नहीं, बच गया। गोली चलने का शिकार खेलने का आनंद नहीं मिला! अच्छा, तो तू उनका उपकार करने गई थी। पगली! यह मैं मानता हूं कि मनुष्य को कभीकभी अनिच्छा से भी कोई काम कर लेना पड़ता है; पर...नहीं...जान-बूझकर किसी उपकार-अपकार के चक्र में न पड़ना ही अच्छा है। बंजो पल-भर की भावुकता मनुष्य के जीवन को कहां-से-कहां खींच ले जाती है, तू अभी नहीं जानती। बैठ, ऐसी ही भावुकता को लेकर मुझे जो कुछ भोगना पड़ा है, वही सुनाने के लिए तो मैं तुझे खोज रहा था।
बापू... क्या है रे! बैठती क्यों नहीं? वे लोग यहां आ गए हैं...
ओहो तू बड़ी पुण्यात्मा है...तो फिर लिवा ही आई है, तो उन्हें बिठा दे छप्पर में और दसरी जगह ही कौन है? और बंजो! अतिथि को बिठा देने से ही नहीं काम चल जाता। दो-चार टिक्कर सेंकने की भी...समझी? नहीं-नहीं, इसकी आवश्यकता नहीं कहते हुए इन्द्रदेव बुड्ढे के सामने आ गए। बुड्ढे ने धुंधले प्रकाश में देखा-पूरा साहबी ठाट! उसने कहा—आप साहब यहां...
तुम घबराओ मत, हम लोगों को छावनी तक पहुंच जाने पर किसी बात की असुविधा न रहेगी। चौबेजी को चोट आ गई है वह सवारी न मिलने पर रात-भर यहां पड़े रहेंगे। सवेरे देखा जाएगा। छावनी की पगडंडी पा जाने पर हम लोग स्वयं चले जाएंगे। कोई...