अरे! पकड़ा गया तो...।
क्षण-भर के लिए रुका। —उसने पहचाना, यह तो मैना के घर के पीछे की फुलवारी की पक्की दीवार है। तो वह छिप जाए। यहीं न; अच्छा अब तो सोचने का समय नहीं है। लो,वह सब आ गए।
छोटी-सी दीवार फांदते उसको क्या देर लगती। मैना की फुलवारी में अंधकार था। उसके कमरे की खिड़की की संधि से आलोक की पहली रेखा निकलकर उस विराट अंधकार में निष्प्रभ हो जाती थी।
मधुबन सिरस से ऊपर चढ़ी हुई मालती की छाया में ठिठक गया। पीछा करने वालों की आहट लेने लगा। किंतु मेरा भ्रम है। अभी कोई नहीं आया। उसने साहस भरे हृदय से विश्वास किया, यह सब मेरा भ्रम है। अभी कोई नहीं आया और न जानता है कि मैं कहां हूं। यह मैना का घर है।...कोई दूसरा भी तो यहां आ सकता है। कौन जाने वह किसी के साथ उस कोठरी में सुख लुटाती हो। वेश्या...रुपये की पुजारिन! है तो...मेरे पास भी।
उसने अपनी थैली पर हाथ रखा। फिर महन्त की आंखें उसके सामने आ गईं। धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। ओह! कितनी बड़ी। उनसे छिपकर वह बच नहीं सकता। समूचा आकाश केवल महन्त की आंख बनकर उसके सामने खड़ा था।
मधुबन ने आंख बंद करके अपना सिर एक बार दोनों हाथों से दबाया। उसने कहा भय क्या! फांसी ही न पाऊंगा फिर इस समय तो, अच्छा देखूं कोई है तो नहीं।
वह धीरे-धीरे बिल्ली के-से दबे पांवों से मैना की खिड़की के पास गया। संधि में से भीतर का सब दृश्य दिखाई दे रहा था। आंगन में भीतर खुलने वाला किवाड़ बंद था। खिड़की से लगा हुआ मैना का पलंग था। वह लालटेन के उजाले में कोई पुस्तक पढ़ रही थी। मधुबन को विश्वास न हुआ कि वह अकेली ही है। उसने धीरे से खिड़की के पल्लों को खोला। मैना ध्यान से पढ़ रही थी। उसने फिर पल्लों को हटाया। अब मैना ने घूमकर देखा।
वह चिल्लाना ही चाहती थी कि मधुबन की अंगुली मुंह पर जा पड़ी। चुप रहने का संकेत पाकर वह उठ खड़ी हुई। धीरे से किवाड़ खोला। उसने चकित होकर मधुबन का उस रात में आना देखा। वह संदेह, प्रसन्नता और आश्चर्य से चकित हो रही थी।
मधुबन ने भीतर आकर किवाड़ बंद कर दिया। मैना सोच रही थी-मधुबन बाब सबसे छिपकर मुझ वेश्या के यहां इस एकांत रजनी में अभिसार करने आए हैं!—उसे न जाने क्यों विरक्ति-सी हुई। उसने मधुबन को पलंग पर बैठाते हुए कहा—भला इधर से आने की...
उसके मुंह पर हाथ रखकर मधुबन ने कहा चुप रहो। पहले यह बताओ कि तुम्हारे यहां इस समय कौन-कौन है। यहां कोई हम लोगों की बात सुनता तो नहीं?
वह मुस्कुराने लगी। वेश्या के यहां आने में इतने भयभीत। क्यों? यहां तो कोई नहीं सुन सकता। मां और निद्धू तो आंगन के उस पार सड़क वाले कमरे में हैं। रधिया सोई होगी। वह तो संध्या से ही ऊंघने लगती है। इधर तो मैं ही हूं। फिर इतना डर काहे का? कुछ चोरी तो नहीं कर रहे हैं। एक रात मेरे घर रहने से बहू रूठ न जाएगी। मैं...
मधुबन ने फिर उसको चुप रहने का संकेत किया। मैना ने देखा कि मधुबन का मुंह विवर्ण और भयभीत है। उसने मधुबन के शरीर से सटकर पूछा—बात क्या?