पृष्ठ:तितली.djvu/११४

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सी हरियाली थी, किंतु नंदरानी बरना के ढालुवे करारे पर दृष्टि गड़ाए थी, इंद्रदेव का आना उसे मालूम नहीं हुआ।

इंद्रदेव ने 'भाभी' कहकर उसे चौंका दिया। वह कपड़े को संभालती हुई घूम पड़ी। इंद्रदेव ने कहा—आज मेरे यहां कुछ लोग बाहर के आ गए हैं। उनके लिए थोड़ी-सी मटर चाहिए।

और बनावेगा कौन? वही आपका मिसिर न!–रानी ने मुस्कुराते हुए कहा।

तो फिर दूसरा कौन है?—हताश होकर इन्द्रदेव ने उत्तर दिया।

सुनूं भी, कौन आये हैं? कितने हैं, कैसे हैं?

मिस शैला का नाम तो आपने सुना होगा? -संकोच से इंद्रदेव ने कहा।

ओहो यह तो मुझे मालूम ही नहीं! तब तुम लोगों को आज यहीं ब्यालू करना पड़ेगा। मैं अपने मटर की बदनामी कराने के लिए तुम्हारे मिसिर को उसे जलाने न दूंगी। मिस साहिबा किस समय भोजन करती हैं? अभी तो घंटे भर का समय होगा ही।

इंद्रदेव भीतर के मन से तो यही चाहते थे। पर उन्होंने कहा-उनको यहां....

मैं समझ गई! चलो, तुम्हारे साथ चलकर उन्हें बुला लाती हूं। भला मुझे आज तुम्हारी मिस शैला की...कहकर नंदरानी ने परिहासपर्ण मौन धारण कर लिया।

इंद्रदेव नंदरानी के बहुत आभारी और साथ ही भक्त भी थे। उसकी गरिमा का बोझ इंद्रदेव को सदैव ही नतमस्तक कर देता। गुरुजनोचित स्नेह की आभा से नंदरानी उन्हें आप्लावित किया ही करती।

भाभी-कहकर वह चुप रह गये।

क्यों, क्या मेरे चलने से उसका अपमान होगा। एक दिन तो वही मेरी देवरानी होने वाली है, क्या यह बात मैंने झूठ सुनी है?

वास्तविक बात तो यह थी कि इंद्रदेव शैला के आ जाने से बड़े असमंजस में पड़ गये थे, उनकी भी इच्छा थी कि नंदरानी से उसका परिचय कराकर वह छुट्टी पा जाएं। उन्होंने कहा-वाह भाभी, आप भी...

अच्छा-अच्छा, चलो। मैं सब जानती हूं कहती हुई नंदरानी बगल के बंगले की ओर चली। इंद्रदेव पीछे-पीछे थे।

छोटे-से बंगले के एक सुंदर कमरे के बाहर दालान में आरामकुर्सी पर बैठी हुई शैला तन्मय होकर हिमालय के रमणीय दृश्यवाला चित्र देख रही थी। सहसा इंद्रदेव ने कहामिस शैला मेरी भाभी श्रीमती नंदरानी।

शैला उठ खड़ी हई। उसने सलज्ज मस्कान के साथ नंदरानी को नमस्कार किया।

नंदरानी उसके व्यवहार को देखकर गद्गद हो गई। उसने शैला का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा-बैठिए, इतने शिष्टाचार की आवश्यकता नहीं।

नंदरानी और इंद्रदेव दोनों ही कुर्सी खींचकर बैठ गए! तीनों चुप थे। नंदरानी ने कहा-आज आपको मेरा निमंत्रण स्वीकार करना होगा।

देखिए बिना कछ पर्व-परिचय के मेरा ऐसा करना चाहे आपको न अच्छा लगे: किंत मेरा इंद्रदेव पर इतना अधिकार अवश्य है और मैं शघ्रिता में भी हूं। मुझे ही सब प्रबंध