नीचा था और औखें डबडबा रही थीं। वह क्या बोले?
- इंद्रदेव ने फिर कहा—तो आज यहीं रहना होगा!
- क्या तुम चाहते हो कि मैं अभी चली जाऊं?—बड़े दुःख से शैला ने उत्तर दिया।
यह लो, मैं पूछ रहा हूं। नहीं-नहीं-मैं तो तुम्हारी ही बात कर रहा हूं। तुम तो उसी दिन चली जा रही थीं। मैंने देखा कि तुम अपना काम अधूरा ही छोड़कर चली जा रही हो, इसीलिए रोक लिया था। अब तो मैं समझता हूं कि तुम अपने ग्राम-सुधार की योजना अच्छी तरह चला लोगी। मां को समझा देना कि जब इंद्रदेव को ही अपने लिए सम्पत्ति की आवश्यकता नहीं रही, तब उन्हें चाहिए कि यह संचित सम्पत्ति अधिक-से-अधिक दीनदुःखियों के उपकार में लगाकर पुण्य और यश की भागी बनें।
- तो, तुम अब भी गांव के सुधार में विश्वास रखते हो?
मेरे इस त्याग में इस विचार का भी एक अंश है शैला कि जब तक उस एकाधिपत्य से मैं अपने को मुक्त नहीं कर लेता, मेरी ममता उसके चारों ओर प्रेम की छाया की तरह घूमा करती। अब मेरा स्वार्थ उससे नहीं रहा। मैं तो समझता हूं कि गांवों का सुधार होना चाहिए। कुछ पढ़े-लिखे सम्पन्न और स्वस्थ लोगों को नागरिकता के प्रलोभनों को छोड़कर देश के गांव में बिखर जाना चाहिए। उनके सरल जीवन में-जो नागरिकों के संसर्ग से विषाक्त हो रहा है।-विश्वास, प्रकाश और आनन्द का प्रचार करना चाहिए। उनके छोटेछोटे उत्सवों में वास्तविकता, उनकी खेती में संपन्नता और चरित्र में सुरुचि उत्पन्न करके उनके दारिद्र और अभाव को दूर करने की चेष्टा होनी चाहिए। इसके लिए सम्पत्तिशालियों को स्वार्थ-त्याग करना अत्यन्त आवश्यक है।
किंतु अधिकार रखते हए तो उसे तुम और भी अच्छी तरह कर सकते थे। शक्ति केन्द्र यदि अधिकारों के संचय का सदुपयोग करता रहे, तो नियंत्रण भली-भांति चल सकता है, नहीं तो अव्यवस्था उत्पन्न होगी। तुम्हारे इस त्याग का अच्छा ही फल होगा, इसका क्या प्रमाण है? मैं तो समझती हूं कि तुमने किसी झोंक में आकर यह कर डाला।
शैला की यह बात सुनकर इंद्रदेव हंसने लगे। उसी हंसी में अवहेलना भरी थी। फिर उन्होंने कहा-संसार के अच्छे-से-अच्छे नियम और सिद्धांत बनते और बिगड़ते रहेंगे। मैं सबको प्रसन्न और संतुष्ट रखने के लिए अपने-आपको जकड़कर रखना नहीं चाहता। जो होना है वह हो ले। मैंने जो अच्छा समझा, वही किया। अच्छा, तो अब अपनी कहो। क्या निश्चय हुआ?
- मैं कल जाना चाहती थी। पर अब तो कुछ दिनों के लिए रुकना पड़ा।
- क्यों-कोई आवश्यक काम आ पड़ा क्या?
- हां, पहले मैं तुम्हारे त्याग की ही परीक्षा करूंगी, फिर दूसरों के किवाड़ खटखटाऊंगी।
- शैला सुनूं भी। मुझे क्या परीक्षा देनी है?
तितली बड़ी विपत्ति में पड़कर सहायता के लिए आई है। उसका शेरकोट बेदखल हो रहा है। बनजरिया पर भी लगान की डिग्री हो गई है। उधर आपके तहसीलदार ने एक फौजदारी करवा दी है, जिसमें मधुबन पर पुलिस ने वारण्ट निकलवाया है। और भी, बिहारीजी के महंत ने डाके का मुकदमा भी उस पर चलाया है। मधुबन का पता नहीं। तितली का कोई सहायक नहीं। उसके ब्याह के बाद ही गांव वालों का एक विरोधी-दल इन